July 14, 2011

ओ आँतकवादी

सोचती हूँ जिस दिलेरी से तुमने वो बम्ब छुपाया होगा,
घर जाके वैसे ही बिटिया को निवाला खिलाया होगा,

कौनसा बाकी रह गया काम अधूरा,
घर से निकलने का बहाना माँ को क्या बताया होगा,

घर से निकलते हुए बच्चे ने पकड़ ली होंगी तेरी टाँगे,
उसे कौन सा खिलौना देकर पीछा छुड़वाया होगा,

गली से गुज़रते हुए कैसे दोस्त की आँख में झाँका होगा,
दोस्तों ने तो आज किसी फिल्म और रात को खाने पे बुलाया होगा,

मिठाई की दुकान के सामने उस भोली सी नाज़नीन से मिली थी आँखे,
उस नज़र का खुमार कैसे खुद पर से मिटाया होगा,

अब्बा ने बोला होगा आते हुए दादी की दवाई लेते आना,
आते वक्त क्या तुमने वो वादा निभाया होगा?

आसान नहीं था आज का काम मेरे भाई,
काम पूरा होते ही काँधा खुद का थपथपाया होगा,

अपने मालिक को खुशखबरी दी होगी वापिस आते हुए,
और रास्ते के शायद किसी मन्दिर, मस्जिद या गुरुदुआरे पे शीश निवाँया होगा,

घर पहुँचते नतीजा देखा होगा टीवी पे,
उस बच्चे की चीखें सुन थोड़ा तुझे भी तो रोना आया होगा

चलो खैर छोड़ो....... जाने दो

12 comments:

  1. प्रिय नहीं .... ओ आतंकवादी ....
    बहुत ही गहन रचना है . हिंदी में ही लिखा कीजिये

    ReplyDelete
  2. एक शब्द "लाजवाब"

    ReplyDelete
  3. Thank you Rashmi ji ... mein change kar deti hun

    ReplyDelete
  4. http://www.parikalpnaa.com/

    आपकी यह प्रस्‍तुति परिकल्‍पना पर भी ....

    ReplyDelete
  5. आदरणीया अनुराधा जी

    सादर अभिवादन !

    बहुत मर्मस्पर्शी रचना है …

    … लेकिन इन कमीनों के दोस्त-रिश्तेदार बच्चे-मां-बाप भी इन जैसे ही होंगे शायद
    …और इन्हें किसी मस्जिद में सिर झुकाने की कहां ज़रूरत होगी , जिनका ख़ुदा ही शैतान हो … वे ख़ुदा से क्या डरेंगे … !!


    सरकारें एकदम असफल और नाकारा हो चुकी हैं । अब आम नागरिकों के सतर्क सावधान और संगठित रहने का समय है …
    हार्दिक शुभकामनाएं !

    - राजेन्द्र स्वर्णकार

    ReplyDelete
  6. अनुराधा जी,
    एक आतंकवादी से चंद सवालात की ग़ज़ल बहुत सुन्दर और दिल को छू लेने वाली बन पड़ी है....काश उन आतंकवादियों के दिल तक भी ये बात पहुँचती जो इस तरह के कारनामों को अंजाम देते हैं.....

    ReplyDelete
  7. http://www.parikalpnaa.com/2011/07/blog-post_16.html

    ReplyDelete
  8. बहुत खूबसूरत.
    जैसा किसी ने कहा - काश वो आतंक के फ़रिश्ते भी इसे पढ़ पायें.
    रोये भले ही ना.. सवालों के जवाब तो दे पायें.

    ReplyDelete
  9. Truely this lines touchedmy soul..!!

    ReplyDelete
  10. ek ek shabd marmsparshi hai..bhaw vivhal hun aur sochne pe mazboor hun..kya inhe insaaniyat ka path kisi ne nahi padhaya...ek ek shabd marmsparshi hai..bhaw vivhal hun aur sochne pe mazboor hun..kya inhe insaaniyat ka path kisi ne nahi padhaya...

    ReplyDelete
  11. अनुराधा, ये दिल से लिखा गया है, दिल को छू गया है. आपसे पूछे बगैर मैंने इसे औरों तक पहुंचा दिया है, फेसबुक के ज़रिये. उम्मीद है के आप इसे ठीक समझेंगी... खैर, अब तो कर दिया है.

    ऐसी बूंदों का इन्तेज़ार रहेगा...

    ReplyDelete
  12. "घर से निकलते हुए बच्चे ने पकड़ ली होंगी तेरी टाँगे। उसे कौन सा खिलौना देकर पीछा छुड़वाया होगा" अति मर्मस्पर्शी एवं गहन रचना। पहली बार आपके ब्लॉग पर आया और कायल हो गया। लिखते रहिये।

    ReplyDelete