बिटिया आज मायके आई हुई है
कितना कुछ बदल गया माँ का घर वही पुराना
पर मेरा अपना ..
या नहीं .. पता नहीं
मेरी सारी किताबें वही अलमारी में सजी है
और धुल भी नहीं जमी
एक खिलौना बिस्तर पे औंधा पड़ा है
चादर पे एक भी सिलवट नहीं
एक फोटो में मेरी दोस्त मुस्कुरा रही है
एक फोटो में बहना गले लगा रही है
वो पल वो शरारतें
मुझे कुछ भी तो भूला नहीं है
ये कम्बल मुझे एक बार पापा ने ओढाया था
उसी रात जब गुस्से में मैंने उनको बहुत सताया था
... और खाना भी नहीं खाया था
इसी तकिये पे मैंने कितने आंसू गिराए थे
देश लौटने के उलटे सीधे
कितने प्लान्स बनाये थे
इस बक्से में चूड़ियाँ सहमी पड़ी मिली
शायद इनको एक बार उतार फेंका था
पर मुझे देख ये भी खिलखिला उठी हैं
ये मेज़ .. यहाँ मैं पढने का नाटक किया करती थी
ये मेज़ .. यहाँ में अपने सपनो से लड़ा करती थी
ये दरवाज़े के पीछे कपडे टांगने की कील
इस पे रोज़ के अपने तज़रबे तांगा करती थी
इस खिड़की पे चाँद आज भी मेरा इंतज़ार कर रहा था
तुम ज़रा रुकना मैं अभी आई
.. शायद इससे भी कहा था
ये बिस्तर इसपे नींद आते आते चली जाती थी
अगले दिन पेपर होता था और मैं तारों से बतियाती थी
... पर पास हो जाती थी
कितनी हिदायतें इस कमरे में आज भी गूंजती हैं
हम याद आयीं कभी ?
... यह भी पूछतीं हैं
बिटिया खुश बहुत है पर फिर भी सोचती है
क्यूँ जाना ज़रूरी था ये खुद से ही पूछती है
एक किताब की तरह में भी अलमारी में छुप जाती
या चूड़ियों के डिब्बे में बिंदिया बन के गुम जाती
कमरे की हर चीज़ मुझे यूँ हैरानी से देखती है
पता नहीं फिर कब आओगी .. ताना फेंकती है
दीवार पे टंगी घडी बेवजह मुस्कुराती है
वक़्त के अलावा सब थम गया है
वक़्त की बराबरी बिटिया कहाँ कर पाती है
क्या लिखूँ अब, कुछ लिखने को छोड़ा ही नहीं। अब तो यही सोच रहा हूँ कि तुम्हारे कमरे के उन मेज़ कुर्सियों और दीवारों की तरह तुम्हे पहले से जानता तो कितना अच्छा होता। तुम्हारे हर बदलते रंग को मैं भी देख सकता। और फिर जब तुम मुझसे मिलने आती तो मैं भी तुम्हे देख कर खुश हो जाता। और कहता तुम्हें चिढ़ाने के लिए " मुझे पहचाना या भूल गई "
ReplyDeleteशायद थोड़ी देर के लिए मुहँ भी फुला लेता कि इतनी देर लगादी आते आते।
in short... its awesome.. ऐसा लगा जैसे मैं कमरे में खड़ा होकर तुम्हे सबसे मिलते देख रहा हूँ।
Very nicely written...and its really superb :):)
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत अंदाज़ में पेश की गई है पोस्ट.............शुभकामनायें।
ReplyDeleteBehtareen Sahib... What emotions.. simply loved it... Lovely n touching,,,
ReplyDeleteयादों को संभाल कर रखें यह बहुत काम आती हैं
ReplyDeleteसुंदर रचना ,बधाई ......
My sister read this last nite and cried. and i must say some people are beautiful than words and you are the one.
ReplyDeleteSo touching and aankho me aasu aagai ossum yer <3
ReplyDeleteMY BEST COMPLIMENTS,RAM63RAM
ReplyDeletelga apne ghar phunch gayi hun aur ....mummy ki yaad a gayi aansoo ke sath
ReplyDeleteThis is one of ur most heart touching poems I feel ... Maybe bec this was the first one I read and haven't read the whole blog ... But this poem defined U for me .......
ReplyDeleteKyaa kahun.....
ReplyDeleteवक़्त बीतता हैं कहीं और कहीं स्थिर भी रहता हैं. इस दुविधा का अत्यंत संवेदनशील रूपांतरण हैं इस कविता में. एक घर बेटी साथ ले जाती हैं और एक पीछे छोड़ जाती हैं. इन दोनों घरों की मूक व्यथा प्रतिबिंबित है भावपूर्ण शब्दों में.
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