March 25, 2012

सफ़ेद बादल ओढ़ दो ..


कोई अक्स नहीं दिखता मुझे मेरे आईने में .. 
ढूँढ दो मुझे, या फिर ये आइना भी तोड़ दो

वो कहते थे मेरे हाथ खाली अच्छे नहीं लगते ..
कांच के आंसुओं की एक लड़ी मेरी कलाई में जोड़ दो

मैं नबीना, मुझे रास्तों पे भटकने की आदत है ..
जहाँ मेरी मंजिल हो, मेरे पाँव वहीं मोड़ दो

नहीं बाकी मुझ में अब जवाब कोई ..
ऐ सवालों के दरिन्दे, मेरा मकान छोड़ दो

एक शबनम का कतरा था लबों पर, लो सूख गया ..
ऐ ज़िन्दगी, अब मुझे मेरी प्यास से सराबोर दो

मैंने नहीं सुनना चाहती ये बे इन्तहा खामोशी ..
मेरे कानों में शहर के चौराहों का शोर दो

इन फूलों को शायद मुझसे नाराज़गी है ..
वो नहीं आयें तो ना सही .. तुम मुझ पर सफ़ेद बादल ही ओढ़ दो

5 comments:

  1. अछे =अच्छे
    दरिन्दे=परिन्दे ज्यादा अच्छा लगेगा

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  2. मैंने नहीं सुनना चाहती ये बे इन्तहा खामोशी ..
    मेरे कानों में शहर के चौराहों का शोर दो


    waah waah .....

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  3. कोई अक्स नहीं दिखता मुझे मेरे आईने में ..
    ढूँढ दो मुझे, या फिर ये आइना भी तोड़ दो

    pehli line hi khood me kavita hai poori...

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  4. मैंने नहीं सुनना चाहती ये बे इन्तहा खामोशी ..
    मेरे कानों में शहर के चौराहों का शोर दो

    waah!

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