चूम के गालों में पे रंग कई हज़ार दे गया ..
होठों को ये कैसा इंतज़ार दे गया
निगाहों से लिखे ख़त में अपना इज़हार दे गया ...
आँखों में मेरी, इश्क के आबशार दे गया
उसका पीछे मुड के देखना एक और इकरार दे गया ...
बेचैन कर के वो मुझे ये कैसा करार दे गया
मेरी झूठी कहानी ले गया अपने किस्से ओ आशार दे गया ...
बिन कसम बिन किसी वादे मुझे सदियों का ऐतबार दे गया
रफ्ता रफ्ता मेरी ज़िन्दगी चलती थी, वो एक पल में रफ़्तार दे गया
जोड़ के अपना नाम मेरे नाम से, ये कैसे रूहानी फ़रहात दे गया ...
रफ्ता रफ्ता मेरी ज़िन्दगी चलती थी, वो एक पल में रफ़्तार दे गया
ReplyDeleteजोड़ के अपना नाम मेरे नाम से, ये कैसे रूहानी फ़रहात दे गया ...
गजब का शेर , मुबारक हो
khoobsurat
ReplyDeleteएक एक शेर को खूबसूरती से तराशा है आपने, पढ़ कर मज़ा आ गया!
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