जहाँ एक बूढा दिन, एक रात के बचपन से मिला करता है
दिखता नहीं पर उम्मीद का एक नन्हा सा चाँद उग आता है
जब आसमान का रंग गहरा होते होते .. कुछ पल को ठहर जाता हैज़िन्दगी की हर उस शाम में तुम याद आते हो ..
जब जीने से रौशनी की परियां उठ के जाने लगती हैं
जब झूले पर बैठ के एक किताब खुद को पढ़ने लगती है
जब बिन बारिश भी मिटटी से सौंधी महक आने लगती है
ज़िन्दगी की हर उस शाम में तुम याद आते हो ..
जब आहट भर से निगाहें अधखुले दरवाज़े से टकराने लगें
जब गुलाबों में भी रंग तुम्हारा आने लगे
जब चाय के कप पे तुम्हारे होठों के निशान दिखने लगे
ज़िन्दगी की हर उस शाम में तुम याद आते हो ..
जब छत से दिन भर सूखते ख्वाब उतार लाने का समय हो
जब आसमान में सिर्फ एक तारा और अकेला चाँद हो
जब ना दिन से कोई शिकायत हो ना रात को बुलाने की जल्दी हो
ज़िन्दगी की हर उस शाम में तुम याद आते हो ..
बड़ी बेपरवाही से खुद की पहरेदारी करती हूँ
पर तुम्हारी यादों से हर शाम वफादारी करती हूँ
कभी सोचती सोचती खुद से पूछा भी करती हूँ
की तुम क्यूँ नहीं आते जब हर शाम तुम याद आते हो ..
दिन गंवाया सो कर , रात गंवाई जाग
ReplyDeleteहमको कोई याद करे , ऐसे कहाँ मोरे भाग .
A mind, with peaceful yet focussed vision fo self.. inwardly directed with patience & keen observation is rare to find.
ReplyDeleteEven rarer if that mind is so poetic.
Anuradha! You are one poetess who possess that beautiful mind & soul caressed by divinity herself.
Where your master class poetry attracts me so much, your thoughts do so even more. God bless!
याद याद बस सिर्फ याद , बहुत सुंदर बधाई .....
ReplyDeletewhy did I come...why did I read...why did I leave heavy...
ReplyDeleteagain that feeling...u get that back in me...