ये दौलत की सल्तनत तुम्हे मुबारक हो, ऐ दोस्त /
मैंने रास्ते में फ़कीर को हँसते हुए देखा
तुमने खूब जीते होंगे दुश्मनों के घर /
मैंने तुम्हारे घर एक बच्चे को बिलखते देखा
तुम्हारे शोहरत की किस्से में रोज़ इजाफा हुआ करे /
मैंने तुम्हारे दोस्त को तुमसे बिछड़ते देखा
तुम महफ़िल की जान हो और हर दिल अज़ीज़ हो
मैंने वीरानियों में तुम्हे रोते देखा
तुमने हाथों में जकड ली सारी दुनिया /
मैंने तुम्हारे हाथों से वक़्त फिसलते देखा
तुम सूरज की तरह निकलते हो तो ढल भी जाओगे एक दिन
चाँद मुसाफिर है, मैंने इसे सिर्फ चलते देखा
तुम रहा किये गुमान में की ज़िन्दगी तुम्हारी है /
मैंने अंधेरों में रौशनी को भी रंग बदलते देखा
तुम ने ज़मीन पर लिख दिया नाम, अब ज़मीन तुम्हारी है /
मैंने बेनाम आसमान को भी दिन रात बरसते देखा
मेरे हर सवाल के जवाब में एक और सवाल करते हो /
मैंने तुम्हे तुम्हारे ही जवाबों में उलझते देखा
यूँ कहने को तुम्हारे पास लफ़्ज़ों की कमी तो नहीं /
मैंने तुम में खामोशियों को टहलते देखा
एक दर्पण में तुमने खुद को मुस्कुरा के देखा होगा /
मैंने उस दर्पण को तुम से आँख चुराते देखा
तुम खुश हो की तुम मंजिल की गोद में हो /
मैंने तुम्हारे क़दमों में एक और सफ़र मचलते देखा
साहिबान, मेरे अल्फाजों पे गौर न करो /
मैंने खुद को भी राख राख बिखरते देखा
मैंने रास्ते में फ़कीर को हँसते हुए देखा
तुमने खूब जीते होंगे दुश्मनों के घर /
मैंने तुम्हारे घर एक बच्चे को बिलखते देखा
तुम्हारे शोहरत की किस्से में रोज़ इजाफा हुआ करे /
मैंने तुम्हारे दोस्त को तुमसे बिछड़ते देखा
तुम महफ़िल की जान हो और हर दिल अज़ीज़ हो
मैंने वीरानियों में तुम्हे रोते देखा
तुमने हाथों में जकड ली सारी दुनिया /
मैंने तुम्हारे हाथों से वक़्त फिसलते देखा
तुम सूरज की तरह निकलते हो तो ढल भी जाओगे एक दिन
चाँद मुसाफिर है, मैंने इसे सिर्फ चलते देखा
तुम रहा किये गुमान में की ज़िन्दगी तुम्हारी है /
मैंने अंधेरों में रौशनी को भी रंग बदलते देखा
तुम ने ज़मीन पर लिख दिया नाम, अब ज़मीन तुम्हारी है /
मैंने बेनाम आसमान को भी दिन रात बरसते देखा
एक ठंडी लाश सीने से चिपकाए चलते हो /
मैंने तुम में एक जिस्म सुलगते देखा मेरे हर सवाल के जवाब में एक और सवाल करते हो /
मैंने तुम्हे तुम्हारे ही जवाबों में उलझते देखा
यूँ कहने को तुम्हारे पास लफ़्ज़ों की कमी तो नहीं /
मैंने तुम में खामोशियों को टहलते देखा
एक दर्पण में तुमने खुद को मुस्कुरा के देखा होगा /
मैंने उस दर्पण को तुम से आँख चुराते देखा
तुम खुश हो की तुम मंजिल की गोद में हो /
मैंने तुम्हारे क़दमों में एक और सफ़र मचलते देखा
साहिबान, मेरे अल्फाजों पे गौर न करो /
मैंने खुद को भी राख राख बिखरते देखा
Amazing SKB!!
ReplyDeletemasha-allah!
ReplyDeletebut something I miss in ghazal form in general is 'coherence'.
Simply Amazing!!
ReplyDeleteबेहद आला 👌👌
ReplyDeleteबेहद आला 👌👌
ReplyDeleteवाह , सूफी दर्शन झलक रहा है इसमें
ReplyDeleteवाह , सूफी दर्शन झलक रहा है इसमें
ReplyDeleteKya kaha hai anu mam!! Bahut shandar aur jaandar
ReplyDeleteKya kaha hai anu mam!! Bahut shandar aur jaandar
ReplyDeleteएक से एक कीमती शेरों से युक्त लाज़बाब ग़ज़ल.. प्रशंसा स्वीकार करें !
ReplyDelete-अरुण
एक से एक कीमती शेरों से युक्त लाज़बाब ग़ज़ल.. प्रशंसा स्वीकार करें !
ReplyDelete-अरुण
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ReplyDeleteReflective couplets from a radiant pen. Words compliment the inherent thoughts with great finesse. Another unique post.
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