October 24, 2015

तुम्हारे छूने तक..


पेंटिंग बाय : जॉन फेर्नान्देस

तुम पूछोगे मुझे याद करती हो..
मैं जवाब में चुप रहूँगी..
तुम पूछोगे चाँद उतरता है..
मैं चुपके से आसमां तकूँगी..


हमारी कहानी जब तुम पानी में बहा दोगे..
मैं झीलों में ख़ुद को डुबाया करूँगी ..

तुम मेरे ख़त को हवाओं पर ख़र्च करोगे..
मैं कोयल बन कर उन लफ़्ज़ों को फिर से सहेज लूँगी..

जब शाम के मुसाफ़िर तुम्हारा नाम गुनगुनाते चलेंगे..
मैं गुनगुने बादलों से देर तक तुम्हारी बातें करूँगी ..

ज़मीं पर जहाँ मोहब्बत के तारे उतरते हैं..
तुम्हारी यादों का मैं भी सजदा करूँगी..

ये सच है की जिस्म ये ठंडा हो चुका है..
तुम्हारे छूने तक.. जाना, मैं ज़िन्दा रहूँगी.. 

11 comments:

  1. बेहद खूबसूरत ..

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  3. अभिव्यक्ति की पराकाष्ठा पर स्थित, ये कविता नहीं.. किसी अत्यंत मर्मस्पर्शी एवं आलौकिक प्रेम का मानसरोवेर है |

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    1. खूबसूरत टिप्पड़ी !

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  4. Beautiful. Has a similar theme as Amrita Pritam's "Main phir milaangi tujhe", but contains its own unique flavor. Very well crafted!

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  5. सच में बहुत गहराई से लिखा है।

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  6. Last two lines
    Simply amazing
    Khayaal bahut Nazuk aur Bahut Ooncha hai
    Keep writing

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  7. ये आपका मास्टर पीस है।
    वाह

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  8. बहुत सुन्दर

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  9. कल्पना की ऊँचाइयों के परे, प्रेम को इतनी ख़ूबसूरती से दर्शाना हर किसी के बस की बात नहीं, तुम्हारे हर एक शब्द में मीरा सी लीनता, राधा सा प्यार नज़र आता है....👌👌

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