इस रेतीली ज़मीन से परे..
दो चाँद हैं आसमान पर ..
इस चाँद पर मैं हूँ ..
और तुम हो उस चाँद पर ..
मैने इस चाँद के चेहरे में..
तुम्हारा इंतज़ार समेट रखा है..
आओ और ले जाओ अपनी अमानत ..
रूह को जिस्म में लपेट रखा है ..
बादाल गीले गीले से..
रात निचोड़ती बूँदें..
आँखें नीली नीली सी ..
ख्वाब कस कर मूंदें..
इन दो चाँदों के बीच..
एक असीमित रात है..
गहरी नदी है तन्हाई की ..
ठहरी हुई एक बात है..
इस दरिया में बहता हुआ मेरा अक्स है कहीं..
कुछ रोज़ पहले अनकहे लफ्ज़ जलाए थे ..
पानी में बहाए थे यहीं ..
उन लफ़्ज़ों को अपनी गज़ल में ढाल लेना..
अपने चाँद से कह कर ..
मेरा बिखरा हुआ अक्स संभाल लेना..
इस बहती रात को मैंने छू लिया है ..
सुनो ..
तुम भी इसे छू कर
मेरे लम्स को चंदन कर दो ..
सिमटे हुए हैं चाँदनी के बुत..
मानो कोई आसमान डूबने वाला हो..
सुनो ..
आसमान डूबने से पहले मुझे चाँदनी कर दो..
इस गहराती रात की अमावस पर ..
तुम अपने चाँद को गले लगाना..
आसमान की मिट्टी से मंदिर बना कर..
तुम सजदों का दिया जलाना ..
मेरे जाने के बाद ..
मेरे फिर आने से पहले ..
मेरी रूह के पश्मीने ..
तुम अपनी साँसों में गुनगुनाना ..
sundar :)
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत
ReplyDeleteखूबसूरत।
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