मैंने देखा था उस औरत को
पुराने मंदिर के पीछे.. बंजर पेड़ के नीचे..
धूप से लड़ते हुए .. जूतों के ढेर से भिड़ते हुए ..
एक गंदे कपड़े से वो .. साफ़ जूते पोंछ रही थी..
थैले से झाँकती दिन भर की जमा नींद ..
और पास पड़े कम्बल में उम्र भर की ऊनींदी रातें ..
जिस्म क्या बाक़ी था ..
एक ढाँचे पर मानो झुर्रीदार भूरी चद्दर ..
कलाई पर धागे से बंधी .. एक आध मुट्ठी सांसें ..
और गुदा हुआ मटमैला सा इक नाम
मगर ज़ीस्त ज़िंदा थी अभी ..
जूते चमकाती चमकाती, खद धूल से सनी हुई वो औरत ..
जाने क्या बुदबुदाती जाती थी..
मुझे दूर से उसके चेहरे की लकीरों में ..
रह रह कर एक उम्मीद नज़र आती रही थी ..
(Photo Credit: Shailendra Chauhan)
Beautiful..
ReplyDeleteYes, beautiful.
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