October 17, 2016

मादनो..






जिस्म से तू और मैं जब फ़ना होंगे
रूह के काफिलों में हम रवां होंगे 
भर कर क़दमों में आब ए चश्म 
हम मोहब्बत का दरिया होंगे

झील पर ठहरे हुए पतझड़ की तरह  
मेरे होठों पर तेरे निशाँ होंगे
रक्स होगा, रक्स से पहले लेकिन
पिघल कर हम तुम धुंआ होंगे  

ज़मीन से आती हुई सदाओं से
न वाबस्ता हम वहां होंगे
हम भी वहाँ हम नहीं होंगे
बस इश्क के आसमां होंगे 

तुम चाँद का बोसा अलसाया सा
मेरे घूंगरूओं पर आफ़ताब मेहरबान होंगे
साथ चलेंगे दोज़ख तक मादनो
जन्नत में कहाँ हमारे मकां होंगे 

© अनुराधा शर्मा

11 comments:

  1. क्या बात है , मज़ा आ गया

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  2. बेहतरीन नज़्म!! बेहद ख़ूबसूरत

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  3. "हम भी वहाँ हम नहीं होंगे
    बस इश्क के आसमां होंगे
    ....
    साथ चलेंगे दोज़ख तक मादनो
    जन्नत में कहाँ हमारे मकां होंगे"


    क्या बात है... बहुत खूब, अति सुंदर!!

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  4. उफ़्फ मेरी जान..कातिलाना नज़म..मादनों..😘

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  5. उफ़्फ मेरी जान..कातिलाना नज़म..मादनों..😘

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  6. It has the capacity to pierce one's bones !! Very beautiful!! Thank you for sharing !!

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  7. वाह, बहोत खूब।

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  8. बहुत उम्दा नज़्म.

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