जिस्म से तू और मैं जब फ़ना
होंगे
रूह के काफिलों में हम रवां
होंगे
भर कर क़दमों में आब ए चश्म
हम मोहब्बत का दरिया होंगे
झील
पर ठहरे हुए पतझड़ की तरह
मेरे
होठों पर तेरे निशाँ होंगे
रक्स
होगा, रक्स से पहले लेकिन
पिघल
कर हम तुम धुंआ होंगे
ज़मीन
से आती हुई सदाओं से
न
वाबस्ता हम वहां होंगे
हम
भी वहाँ हम नहीं होंगे
बस
इश्क के आसमां होंगे
तुम
चाँद का बोसा अलसाया सा
मेरे
घूंगरूओं पर आफ़ताब मेहरबान होंगे
साथ चलेंगे दोज़ख तक मादनो
जन्नत में कहाँ हमारे मकां
होंगे
© अनुराधा शर्मा
क्या बात है , मज़ा आ गया
ReplyDeleteबेहतरीन नज़्म!! बेहद ख़ूबसूरत
ReplyDelete"हम भी वहाँ हम नहीं होंगे
ReplyDeleteबस इश्क के आसमां होंगे
....
साथ चलेंगे दोज़ख तक मादनो
जन्नत में कहाँ हमारे मकां होंगे"
क्या बात है... बहुत खूब, अति सुंदर!!
उफ़्फ मेरी जान..कातिलाना नज़म..मादनों..😘
ReplyDeleteउफ़्फ मेरी जान..कातिलाना नज़म..मादनों..😘
ReplyDeleteIt has the capacity to pierce one's bones !! Very beautiful!! Thank you for sharing !!
ReplyDelete👌🏻
ReplyDeleteबहुत सुंदर...
ReplyDeleteबहुत सुंदर...
ReplyDeleteवाह, बहोत खूब।
ReplyDeleteबहुत उम्दा नज़्म.
ReplyDelete