January 8, 2017

सीमित - असीमित

6 comments:

  1. वाह्ह्ह्ह् बहुत सुंदर

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति

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  3. सामाजिक वर्जनाओं में जकड़ी ज़िन्दगी को स्वच्छन्द आकाश में विचरने की तीव्र उत्कंठा होती है। स्त्री- संघर्ष को बयां करता मार्मिक शब्दचित्र।

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  4. सुन्दर रचना किन्तु किंचित जटिल. भाषा, बिम्ब, उपमा, रूपक आदि सरल हो तब भी कविता अच्छी हो सकती है. मिर्ज़ा ग़ालिब के दुरूह अंदाज़ स्थान पर आज फ़िराक गोरखपुरी का सरल अंदाज़ पाठकों को अधिक भाएगा.

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