November 8, 2017

स्वपन झरोखे


एक रात ..
आसमान के कोनों में
ऊँघती रहती है..

एक नदी ..
गिर कर भी समंदर में..
रास्ते बूझती रहती है..
गूँजती रहती है..

पतझड़ के पन्नों पर
माज़ी का अलाव..
कुछ बारिशें टहनियों पर
टूँगती रहती हैं..

आँगन की चमेली
अपनी सुगंध में..
स्वपन झरोखे
गूँधती रहती है  ..

रेत की हथेलियों में
लहरों के पलछिन..
सीपियों शंखों में एक कहानी ..
खुद को
ढूंढती रहती है..


- अनुराधा शर्मा 

4 comments:

  1. 👌👌

    रेत की हथेलियों में लहरों के पलछिन...वाह!

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  2. गज़ब दिल पाया है आपने...अहसासों को महसूस करना...फिर शब्दों में ढालना...कमाल है...

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  3. बहुत सुन्दर !! कुछ ऐसे ही ख़याल मुझे भी आये थे http://www.1cupchai.com/2018/01/blog-post_24.html

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