ये खामोशी सुन रहे हो?
ये पानी सी बहती खामोशी ..
काली रात में शांत झील सी खामोशी
आकाश से हसरतों का एक सितारा
इस झील में क्या गिरा
ख़ामोशी .. नूर ऐ खुदा हो गयी
काली रात और नीचे पानी में बहता पिघलता आफ़ताब
मैं पेड़ की डाल सी
बहती नूरानी को छूती हूँ
देखती हूँ
न उदास न उमंगी,
बस देखती हूँ
मेरे कुछ बदमाश पत्ते
कूद गए फिर पानी में
समझाया था इन्हें ..
देखो .. बह गए न मुझसे दूर
इस खामोशी में देखो वक़्त कैसे बह रहा है ठाट से
नहीं देखता वो पेड़ों को, हम तो यूँही बुत बने खड़े है ..
ताकती आखें लिए
कुछ समय पहले की ही तो बात है
मैं भी हरी थी,
मुझ पर भी चांदी की बौर हुआ करती थी
मुझे में अब भी कोई गुंजन बाकी हो कहीं
जब किरणों की छोटी छोटी परियां आकर झूला डाला करती ..
उनकी कुछ सुनहरी किलकारियां चुरा के रख ली थी
यहीं कहीं एक टहनी पे
ऊपर की पत्तियों को मत देखना
उनपे कुछ धागे रख छोड़े है सूखने को
मासूम परियां जाने कितनी मन्नतें मिन्नतें
बाँध जाती थी मेरे इर्द गिर्द
सोहनी मुझ पर अपना दुपट्टा छोड़ गयी थी
बोला था उसको मटका कच्चा है .. नहीं मानी
डूब गयी वो इसी खामोशी में .. महिवाल के लिए
हीर उसी हरे दुपट्टे को मुझसे खींच ले गयी
नादान थी .. नहीं जानती थी ये तो इश्क की चुनरी है
खुद बा खुद बसंती रंग जाती है
जैसे हीर रांझे में रांझा रंग जाती है
वो दुपट्टा हीर ने झील में धोने को क्या डाला
खामोश झील यूँ बसंती हुई है कि
मुझे में अब भी कोई गुंजन बाकी हो कहीं
जब किरणों की छोटी छोटी परियां आकर झूला डाला करती ..
उनकी कुछ सुनहरी किलकारियां चुरा के रख ली थी
यहीं कहीं एक टहनी पे
ऊपर की पत्तियों को मत देखना
उनपे कुछ धागे रख छोड़े है सूखने को
मासूम परियां जाने कितनी मन्नतें मिन्नतें
बाँध जाती थी मेरे इर्द गिर्द
सोहनी मुझ पर अपना दुपट्टा छोड़ गयी थी
बोला था उसको मटका कच्चा है .. नहीं मानी
डूब गयी वो इसी खामोशी में .. महिवाल के लिए
हीर उसी हरे दुपट्टे को मुझसे खींच ले गयी
नादान थी .. नहीं जानती थी ये तो इश्क की चुनरी है
खुद बा खुद बसंती रंग जाती है
जैसे हीर रांझे में रांझा रंग जाती है
वो दुपट्टा हीर ने झील में धोने को क्या डाला
खामोश झील यूँ बसंती हुई है कि
रंगरेज़ भी हैरान है
वक़्त का कतरा कतरा भी जल गया इस बसंती आग में
मैं पेड़ की डाल सी .. हैरान हूँ परेशान हूँ
ये नज़ारा भी अभी बाकी था ?
सोचती हूँ ..
मेरे पत्तों पे रखीं वो परियों की सब मन्नतें
आज कुबूल हो जायेंगी
सब पत्ते गिर रहे हैं पानी में
आज सब धागे रंग जायेंगे ..
और मैं ..
बहुत दिनों बाद आज मुझ पर फिर आके कोयल बैठी है
हम दोनों मिल के .. परियों को आवाज़ देने लगती है
आओ.. फिर झूले डालो ना ..
मैं पेड़ की डाल सी .. हैरान हूँ परेशान हूँ
ये नज़ारा भी अभी बाकी था ?
सोचती हूँ ..
मेरे पत्तों पे रखीं वो परियों की सब मन्नतें
आज कुबूल हो जायेंगी
सब पत्ते गिर रहे हैं पानी में
आज सब धागे रंग जायेंगे ..
और मैं ..
बहुत दिनों बाद आज मुझ पर फिर आके कोयल बैठी है
हम दोनों मिल के .. परियों को आवाज़ देने लगती है
आओ.. फिर झूले डालो ना ..
23 comments:
अब लगता है अनुराधा के आगे कवियत्री लगा कर बात करना पड़ेगा . क्या कहते हैं उर्दूभाषी लहजा बदल लो , कुछ अदब और सलीके से बात करो . ये जहमत भी उठानी पड़ेगी . और कोई उपाय या चारा है भी नहीं . बूढ़े तोते को सीखना ही पड़ेगा .
Anu diiiiiii.... Is tehni par main bhi daal doon apna kesriya dupatta sookhne k liye..mujhe bhi raanjha rang hona hai..mujhe bhi apne mahiwaal k liye doob jaana hai..
Wah anu amazing
अच्छी रचना...अंतिम पंक्तियाँ तो बहुत ही अच्छी लगीं.
Bahut badhiya, but certainly not your best. Keep penning the beauty that unexpressed emotions are! :)
Almost all those who pursue to write or possess poetic talents have there senses of observation and thought process complimenting one another and evolving symbiotically. However each time, when I walk over the delectable ways which the words of your poem pave ahead for me, line by line, I simply do not have to imagine the beauty conveyed. It flashes before me posing the scenes of resplendent and heart warming fantasies, playfully entwined with emotions, woven with the adeptly fabricated threads of thoughts, each thread dyed in a different exotic tint of hearty aspirations with wings
This is nowhere an exaggeration. You may read over your self created spell binder. Find it yourself, a scene, an hour of time, the nature, a captivating ambience and then, tales riding on every thought flight.
This level of prose work can only be painted by a soul brimming with love and divinity herself. The things which you mention, the tales that you derive from are a legacy open to all in the poetic creed. However, it is you who repaints them with heart touching beauty of your soul.
Kya likthi hain aap Anuraadha ji.. Its not me who has to be charged for any uncourteous indecency if I succumb to confess that I have fallen in love with a poetess.. my ever favourite one.. God bless!
sooooooooo wonderfull.......
...khamoshi bolti hai...jaise ki ye khamosh si kavita...khamoshi se dilo.n mei.n ghar kar jaati hai...aur dhadkano.n ke sath, rago.n mein daudne lagti hai....
Dear SKB,
I am touched beyond words that you thought of sharing this beautiful piece with me…
As always, your words have left me speechless.. in trance..
Craving for more.. cos reading your poems is like making love
Thanks a TON
Bee
बेहद शानदार अनु जी। इसीलिये आप के लेखन को पसन्द करता हूँ। आप की कल्पना और मर्म अद्भुत है।।
January 15, 2012
ये खामोशी सुन रहे हो?
ये खामोशी सुन रहे हो?
ये पानी सी बहती खामोशी ..
काली रात में शांत झील सी खामोशी
"आकाश से हसरतों का एक सितारा
इस झील में क्या गिरा
ख़ामोशी .. नूर ऐ खुदा हो गयी
काली रात और नीचे पानी में बहता पिघलता आफ़ताब"
बहुत खूब।
अनु,इससे ज्यादा खूबसूरत कविता मैने मेरे जीवन मे न पढ़ी । बस पढ़ते पढ़ते इसी बासंती पानी मे घुल गयी हूँ मै भी..डूब गयी हूँ और बाहर निकलने को जी नही चाहता..
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