कागज़ बर्फ सा सिकुड़ जाता पर शब्द देर तक जलते रहे
ये कैसे अफ़साने थे आँखों में मौजूद
आग के शोले भी पानी की तरह पलते रहे
वो ठंडा चाँद इस ज़मीन से कोसों दूर
उम्र भर उसकी चाहत में धीरे धीरे पिघलते रहे
क्या सच में जिस्म से जान जुदा कर देती है आग
एक सर्द सी रात में इस ख्याल से उलझते रहे
क्या सच में जिस्म से जान जुदा कर देती है आग
एक सर्द सी रात में इस ख्याल से उलझते रहे
4 comments:
superb. this one is ur best. and my fav.
wow... simply awesome :)
क्या सच में जिस्म से जान जुदा कर देती है आग
एक सर्द सी रात में इस ख्याल से उलझते रहे
waah
loved the ghazal format di :-)
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