September 3, 2011

तुझे अलविदा कह आई


तेरी याद वक़्त के पालने में छोड़ आई
मैं कितनी आसानी से तुझे अलविदा कह आई

तुझे अपना घर अपना आशियाना बनाना चाहती थी मगर
ये दीवार ओ दर अपने हाथों से तोड़ आई

एक अदना सी चीज़ तेरी चुरा लायी
तेरे आँखों के नूर अपने माथे पे सजा लायी

किस तरह मिटाया तुझे खुद पर से ये बताऊँ कैसे
छोड़ दिया मिटटी पर से अपना हक .. तेरी रूह मगर लिपट आई

शायद ये झूठ हो की तेरी याद से नाता तोड़ लिया
शायद ये सच हो की तुझे साँसों में समेट लायी

सावन के झूले पे वो बरसात भूल आई
पर हाथों में तेरे लिए लिख के एक दुआ .. मैं कबूल आई

तुझे अलविदा कह आई ...

8 comments:

Inder said...

Terrific!! A real spell binder!!(like to take the pride in being the first reviewer) -Inder (@jilaawatan)

Srikant said...

Feeling nostalgic !! awesome

himanshu said...

magic.aapne bade dil se likha hai..aur seedha dil ko chu gayi hai..u r great poetress...i was in tears....u r great poetress...i was in tears..

P S said...

Wow..!! Anu...!!
Behtareen!!
Emotion flow is amazing...!!
Another great by You!!

Anonymous said...
This comment has been removed by the author.
Ankur Srivastava said...

प्रिय अनुराधा जी! आपको नहीं पता मुझे कितनी ख़ुशी होती है आपकी कविताओं को पढ़ के ! बेहद ही ख़ूबसूरत लेखनी और सोच है आपकी. बिलकुल अद्भुत और विस्मयकारी रचनाओ में से एक है ये. इसी तरह लिखते रहे !


~ आपका प्रिय पाठक ~

Unknown said...

its beautiful :)

Geet said...

beautiful is the word..*bows*