धीमे धीमे रात सरकती जाती है पैरों तले ..
हाथों में चाँद दबोच के बैठे हैं
धीरे धीरे कागज़ पर पिघलता है काजल ..
उँगलियों में ख्वाब निचोड़ के बैठे हैं ..
दिल ही दिल में पुराने किस्सों से बातें की हैं ..
फिर तेरी यादों के आगोश में बैठे हैं
दूं क्या जवाब तुझे तेरे सवालों का ..
आज अपना ही दिल तोड़ के बैठे हैं
दोस्तों की भीड़ में तन्हाई के सैकड़ों काफिले देखे ..
ये हम किन बेतरतीब दौर में बैठे हैं ..