February 3, 2012

कुछ अजनबी हुआ है मुझ में



आज फिर टूटे है दिल के आइने तमाम,
आज फिर कुछ अजनबी हुआ है मुझ में !

आज फिर मिट गए मेरी किताब के लफ्ज़ सभी ,
आज फिर कुछ पानी हुआ है मुझ मे !

आज फिर बारिश में भीगता नहीं ये मन ,
आज फिर कुछ बेमानी हुआ है मुझ में !

आज फिर रिवाजों से लड़ कर आई हूँ मैं ,
आज फिर कुछ खानदानी हुआ है मुझ में !

आज फिर खुद को धोखे से मनाया है,
आज फिर कुछ बेईमानी हुआ है मुझ में !

आज फिर लफ्जों को वक्त के पालने में रख आई,
आज फिर कुछ गुमनामी हुआ है मुझ में !

आज फिर बेतरतीब ख्वाब आखों से निचोड़े हैं,
आज फिर कुछ अधूरी कहानी सा हुआ है मुझ में !

आज खुद को जिंदगी से दौड लगाते देखा ,
आज फिर कुछ मेरा ही सानी हुआ है मुझ में !

आज फिर तय है की आंखों से नहीं बहने दूंगी आँसू,
आज फिर कोई जिद्द ठानी हुई है मुझे में !

आज फिर कतरा कतरा तन्हाई पी ली हमने,
आज फिर कुछ खाली हुआ है मुझ में !

2 comments:

Inder said...

A world class piece of work.. world class! A real 'state of art' presentation of poetic talent and emotions. Kya likhti ho Anu. So proud of you.. You are the BEST!

Huma G khan said...

you r best one of my fav poem ....