तुमने कहाँ से बेसबब कहानियाँ लिखना सीखा ..
कहाँ से सवालों की जवाबदारियाँ लिखना सीखा
खुद ही धड़कते हो दर्द बन के सीने में ..
कहाँ से हरे ज़ख्मों सा रिसना सीखा
तुम को दूर रखा था इश्क और किस्मत के दो पाटों से ..
तुमने कहाँ से रोज़ रोज़ ज़िन्दगी में पिसना सीखा
तुम्हे हर खरीदार के तोल मोल से बचाया मैंने ..
तुमने कहाँ से खुद बाज़ार जा कर बिकना सीखा
किसने दी तुम्हे इजाज़त मोहब्बत में पागल हो जाने की ..
तुमने कहाँ से प्यार करना इतना सीखा
एक चादर सी फैली हैं अब दिन के उजालों पर ..
तुमने कहाँ से रौशनी पर मर मिटना सीखा
दर्द पराये ले कर खुद को परेशान करने लगे ..
तुमने कहाँ से खुद में उलझना सीखा
एक उम्र गुजरी है तुम में, ज़िन्दगी बूढी हुई है ..
तुमने कहाँ से फिर से बच्चे सा बिलखना सीखा
अभी को कितने इम्तिहाँ बाकी है मजबूरियों के ..
तुम ने कहाँ से मुश्किलों से बिदकना सीखा
ये मेले हैं, भीड़ है सौदागरों की ..
तुम ने कहाँ से अकेले में तड़पना सीखा
अभी तो खुद से खुद की मुलाक़ात बाकी है ..
तुमने कहाँ से क़तरा क़तरा बिछड़ना सीखा
एक मुसाफिर था तू भी, रास्तों पे क़दमों के निशाँ कहते है ..
तुम ने कहाँ से बे वजह रुकना ठिठकना सीखा
मुलायम ही होती रातें तो कौन नींद से शिकायत करता ..
तुमने कहाँ से चाँद से लड़ना सीखा
फासलों से ज़िन्दगी में कुछ पल इनायतें हैं ..
तुम ने कहाँ से इस दरमियान मरना सीखा
वक़्त की शाखों से रात टपकती है दिन भर ..
तुम ने कहाँ से रातों को दिन करना सीखा
3 comments:
You know Anu, everytime you write I find my favourite poetess in you. However at times, as for this poem, I must say that I felt the self pride in knowing you so well and close.
Dekho! Sun lo! Jaan lo ki main keh rahaa hun! Yun to koi bhi nahin likhta.. Koi kaise soch sakta hai ek aam sangdil nazariye se baahaar aa kar.. Tum woh ho jo zindagi ki zadd o hadd se baahaar aa kar zindagi ko dekhti ho.. Jab wo naayaab khayaal aur tumhaara Ilm e sukhan milte hain.. I can't help myself falling in love yet again with your verses and your poetic self.. God bless!
Awesome n touching , keep it up! :)
This poem is sooooooo heart touching sooooooooooooooo good. The beauty in the poem is its simplicity. B/w I never check your blog before. Will do it now :)
Keep writing !!
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