September 20, 2011

बिटिया आज मायके आई हुई है



बिटिया आज मायके आई हुई है
कितना कुछ बदल गया माँ का घर वही पुराना
पर मेरा अपना ..
या नहीं .. पता नहीं

मेरी सारी किताबें वही अलमारी में सजी है
और धुल भी नहीं जमी
एक खिलौना बिस्तर पे औंधा पड़ा है
चादर पे एक भी सिलवट नहीं

एक फोटो में मेरी दोस्त मुस्कुरा रही है
एक फोटो में बहना गले लगा रही है
वो पल वो शरारतें
मुझे कुछ भी तो भूला नहीं है

ये कम्बल मुझे एक बार पापा ने ओढाया था
उसी रात जब गुस्से में मैंने उनको बहुत सताया था
... और खाना भी नहीं खाया था

इसी तकिये पे मैंने कितने आंसू गिराए थे
देश लौटने के उलटे सीधे
कितने प्लान्स बनाये थे

इस बक्से में चूड़ियाँ सहमी पड़ी मिली
शायद इनको एक बार उतार फेंका था
पर मुझे देख ये भी खिलखिला उठी हैं

ये मेज़ .. यहाँ मैं पढने का नाटक किया करती थी
ये मेज़ .. यहाँ में अपने सपनो से लड़ा करती थी

ये दरवाज़े के पीछे कपडे टांगने की कील
इस पे रोज़ के अपने तज़रबे तांगा करती थी

इस खिड़की पे चाँद आज भी मेरा इंतज़ार कर रहा था

तुम ज़रा रुकना मैं अभी आई
.. शायद इससे भी कहा था

ये बिस्तर इसपे नींद आते आते चली जाती थी
अगले दिन पेपर होता था और मैं तारों से बतियाती थी
... पर पास हो जाती थी

कितनी हिदायतें इस कमरे में आज भी गूंजती हैं
हम याद आयीं कभी ?
... यह भी पूछतीं हैं

बिटिया खुश बहुत है पर फिर भी सोचती है
क्यूँ जाना ज़रूरी था ये खुद से ही पूछती है

एक किताब की तरह में भी अलमारी में छुप जाती
या चूड़ियों के डिब्बे में बिंदिया बन के गुम जाती

कमरे की हर चीज़ मुझे यूँ हैरानी से देखती है
पता नहीं फिर कब आओगी .. ताना फेंकती है

दीवार पे टंगी घडी बेवजह मुस्कुराती है
वक़्त के अलावा सब थम गया है
वक़्त की बराबरी बिटिया कहाँ कर पाती है 

September 14, 2011

हिंदी का महत्व

मैं कैसी कवयित्री हूँ ..
नहीं जानती थी कि आज हिन्दी दिवस है
नहीं जानती थी कि आज हिन्दी हिन्दी खेलना है

क्या हिन्दी को एक दिन में मनाया जा सकेगा

मैं कैसे मनाऊं ये दिवस
आज हिन्दी साहित्य के नाम का केक काट लूं या
हिन्दी कविताओं का गुलदस्ता बना मेज़ पे सजा लूं

और कहाँ मनाऊं ये दिवस
परदेस में कौन सुनेगा मेरा हिन्दी प्रेम
और दिल्ली अभी भी दूर है दोस्तों

पर मैं क्यूँ मनाऊं ये दिवस
क्यूँ दूँ श्रद्धांजलि उस भाषा को
जो अमर है मुझमें
कितने ही अनुभव लिए

अब अपनी मातृभाषा से प्रेम करना कैसे सीखूं

बचपन की हर याद में हिन्दी है
चाचा चौधरी का मज़ा आर्चिज़ कॉमिक्स में कहाँ मिल पाया
हिंदी न हो तो शिवानी जिज्जी को कैसे याद करूँ
कैसे प्रेमचंद की 'निर्मला' को अंग्रेजी में अनुवाद करूँ

पापा की हर डांट हिन्दी में थी
वैसे दादी पंजाबी है पर वो भी गुस्से में हिन्दी ही बोलती थी
लेकिन माँ ने पुचकार लिया ...
"बिटिया" कह के मना लिया

हिंदी के कितने ही निबंध लिखवाए मुझसे मेरी छोटी बहना ने
हिंदी की थी भाई की वो पहली गाली जिसपे उसे मार पड़ी
पापा परदेस जाने लगे तो उनके बैग में छुपाया एक पत्र
गुडिया चाहे न लाना ... पापा जल्दी आ जाना
हाँ .. हिंदी में 

हिंदी प्रेम इसलिए नहीं क्योंकि पढ़नी चाहिए
हिंदी प्रेम इसलिए क्यूँकि .. ये अपनी है

यूँ तो अंग्रेजी में बहुत गिटपिट आती है मुझे
पर अपनी भावनाओं को हिन्दी में ही व्यक्त कर पाती हूँ मैं
क्यूँकि इसी में बह पाती हूँ मैं

और सुन लो सब.. डर नहीं है मुझे
हिन्दी के जैसे ही मुझमें भी मिलावट है
थोड़ी उर्दू, बंगला, पंजाबी भी है
क्यूँ करूँ मैं भाषा का सम्बन्ध विच्छेद

हिन्दी में कितनी भाषाओं का समावेश है
राष्ट्रीय भाषा है .. धर्मंनिरपेक्ष भाषा है
हिन्दी गवर्नमेंट स्कूल की भाषा नहीं
मेरी भाषा है .. हम सबकी भाषा है

माँ कहती है मेरा पहला शब्द हिन्दी में था
माँ ...
मेरा अंतिम शब्द मैं कहती हूँ
... साईं

September 3, 2011

तुझे अलविदा कह आई


तेरी याद वक़्त के पालने में छोड़ आई
मैं कितनी आसानी से तुझे अलविदा कह आई

तुझे अपना घर अपना आशियाना बनाना चाहती थी मगर
ये दीवार ओ दर अपने हाथों से तोड़ आई

एक अदना सी चीज़ तेरी चुरा लायी
तेरे आँखों के नूर अपने माथे पे सजा लायी

किस तरह मिटाया तुझे खुद पर से ये बताऊँ कैसे
छोड़ दिया मिटटी पर से अपना हक .. तेरी रूह मगर लिपट आई

शायद ये झूठ हो की तेरी याद से नाता तोड़ लिया
शायद ये सच हो की तुझे साँसों में समेट लायी

सावन के झूले पे वो बरसात भूल आई
पर हाथों में तेरे लिए लिख के एक दुआ .. मैं कबूल आई

तुझे अलविदा कह आई ...