December 30, 2011

Eh hasrat dilon tal di hi nahi ..



kaash assi doven ikko skool che padhe hunde 
maaf karin par ek duje de sab to karibi dost hunde

KG to leke panjvi tak te assi hello vi nahi kehnde
dono apne apne dostaan vich mashroof rehnde
ek din tussi loki saadi gali vich move* ho jaande
assi dono bus stop te milde ek hi bas vich skool jaande
ankh vi na milaande

sixth class vich mainu tu jaan boojh ke rulaunda
volleyball match te tu mainu adangi maar giraaunda
pher sorry kehn de bhaane aunty nu leke ghar aaunda
naale chacha chaudhry te saabu di comics vi liaaunda

ek din main savere late ho jaandi te bhajji bhajji aandi
tu mere liye bus rukwai hoyi si, eh dekh ke khush ho jaandi
saadi dosti ho jaandi

seventh class che tu mera lunch bin mange khaanda
main shikayat kardi te tu mainu ek zoron laganda
phir mere gharon tere layi ek extra lunch box aanda
tu oh lunch box chhad ke mere hi lunch box ton khaanda

eighth class wich tu te main, class de monitor ban jaande
aapas di galan te mukdi nahi si, baaki sab nu ki chupp karaande
free period vich tappi jaande

ninth class wich pata nahi kehde singer da cassette liyanda
walkman da ik earphone apne kanna wich te ek mere kanna che lagaanda
mainu zara sa nahi jachna par tu mast hoke sunni jaanda
duffer, tennu khush vekh mera dil inj inj bhar aanda

tenth class vich doven ek duje naal boards di padhaai karde
tu mainu maths te science samjhaanda, assi ek din wi na lad de
achhe numberan ton tarde

eleventh vich saadi yaari paas vaale skool vich vi benchmark ban jaandi
tu har vele mere saath rehnda te meri saheliyaan mazaak udaandi
*eho jihi koi gal nahi, assi sirf dost hai ne* main sab nu samjhaandi
eh sun ke ek chandriye taan tere layi mainu hi chhithi phadaandi

tu ishqaan de chakkraan te painda, teri life goals pichhe reh jaandi
tera hi bhala soch ke, main oh chitthi seedhe dustbin te daal aandi
ehni sohni vi nahi si shehzaadi

assi dhai vajje bichhad de, te saade panj vajje phir milde
din diyan gallaan da khatta meetha achaar kad de
tu shaami khedhan jaanda te assi ghar bethe padh de
*tere liye chocolate laavanga je channo tu mera homework karde*

tution de raaste vich je koi mainu chhed jaanda
main ro ro dasdi tainu tu mainu chupp karaanda
chupchaap agle din tu ohnu cycle ton utaar giraanda
waapsi che anaardaana goliyan te GulzarSaab* di CD liyaanda

twelfth de preboard vich mere number zara kamm aande
aur tu te mere maa piyo .. mere pichhe pad jaande
apni padhaai chhad ke tussi mainu revisions karvaande
mere achhe numbraan layi tussi 'dwaare matha tek aande

farewell te tu mainu halka kaala teeka lagaaunda
khud kudiyan che ghumda, sab to nain ladaaunda
par mere paason ekko sohne munde nu wi door bhagaaunda
padhaai ton dhyaan nahi wandna, tu mainu samjhaaunda

eh vaakya khatam kidhar karaan main jaan sakdi hi nahi
saadi dosti inj nahi si, eh sirf kavita hai main manndi hi nahi
kade kade main sochdi haan te soch soch lagdi hi nahi
ke tu aur main hunne mile haan ..eh gal kuch jamdi hi nahi

assi doven ek skool che pade hunde
.. eh hasrat dilon tal di hi nah

December 26, 2011

ज़िन्दगी से शिकवा था ..


ज़िन्दगी से शिकवा था, ये तो अब समझ आया ..
मरे जा रहे थे जीने के नाम पे

जिस्म मिट्टी में दफ़न था पर धड़कता था रह रह कर ..
उधार की आहें थीं साँसों के नाम पे

रोज़ चाबी भरते थे, क्या क्या न कह मनाते थे ..
एक प्लास्टिक का खिलौना हो मानो, इस क़ल्ब* के नाम पे

बुलाते थे बादलों को आँखों में सिमट जाने को ..
आंसुओं में भीगते थे बारिशों के नाम पे

चाँद को लोरी सुना के सुला देते थे आसमान पे ..
करवटों से लड़ते थे .. नींदों के नाम पे

खुशफ़हमी थी की पा लिया सुकून खुदाई का ..
खुद को नाराज़ रखते थे हसरतों के नाम पे

[क़ल्ब* = दिल ]

December 7, 2011

ये जो है ज़िन्दगी ..



रात को इसे उतार के तकिये पे सुला देती हूँ प्यार से ..
रोज़ सुबह मुझसे पहले उठ जाती है ज़िन्दगी 

बस खिड़की से बाहर की दुनिया देखती है शहज़ादी ..
घर से  बाहर ले जाऊं तो डर जाती है ज़िन्दगी 

बहुत नाटक करती है ये ड्रामेबाज़ ..
कहना ज़रा भी तो नहीं मानती है ज़िन्दगी 

बहुत नादान है, किसी छोटी बच्ची की तरह ..
मेले की भीड़ में हाथ छोड़ जाती है जिंदगी 

बहुत ढूँढती हूँ इसे कह्कशों में ..
अकेले में रोती हुई गले लिपटने आती है ज़िन्दगी 

वो जो एक अपना हो उससे ही नाराज़ फिरती है जाने कहाँ ..
बेकार मेहमानों को घर बुला लाती है ज़िन्दगी 

मैं भी किसी उड़ान में रहती हूँ शायद ..
बारहां मेरी सोच से पीछे रह जाती है जिंदगी 

December 6, 2011

हर ख्याल जैसे एक इबादत हो ..




ख्याल भी अब मुझे धोका देने लगे है ...
जिन में तुम नहीं होते वो ख्याल ज़ेहन से खोने लगे हैं

पहले तो तुम किसी ख्याल में सिमट आते थे ..
अब ख्याल तुम्हारे सदके होने लगे हैं

एक वक़्त था सोच की उड़ान भरा करती थी ..
अब ख्यालों के पंछी तुम्हारे पिंजरे में सोने लगे हैं

तेरे ख्यालों को हम साँसों की माला बना कर ..
तेरी ज़िन्दगी में खुद को पिरोने लगे हैं

हर एक ख्याल तेरे नूर से रोशन हुआ है ..
हर ख्याल के कतरे में हम तेरे होने लगे हैं

एक नज़र जो तेरी इन ख्यालों पे पड़ जाए ऐ सनम ..
तेरे हिस्से के इज़हार अब अजनबियों से होने लगे हैं

ख्याल ख्याल संवर चूका है तेरे नाम से ..
ख्याल अब तेरी इबादत होने लगे हैं

December 1, 2011

वो एक पल में ..





चूम के गालों में पे रंग कई हज़ार दे गया ..
होठों को ये कैसा इंतज़ार दे गया

निगाहों से लिखे ख़त में अपना इज़हार दे गया ...
आँखों में मेरी, इश्क के आबशार दे गया

उसका पीछे मुड के देखना एक और इकरार दे गया ...
बेचैन कर के वो मुझे ये कैसा करार दे गया

मेरी झूठी कहानी ले गया अपने किस्से ओ आशार दे गया ...
बिन कसम बिन किसी वादे मुझे सदियों का ऐतबार दे गया

रफ्ता रफ्ता मेरी ज़िन्दगी चलती थी, वो एक पल में रफ़्तार दे गया
जोड़ के अपना नाम मेरे नाम से, ये कैसे रूहानी फ़रहात दे गया ...


November 30, 2011

तुम ही तो हो ..



कुछ भी कहती हूँ तुम्हे नया नहीं लगता
तुम्हे क्या कह के खुश किया करूँ
फिर लगता है की जब तुम मैं हो और मैं तुम
तो क्यूँ न खुद को ही खुश किया करूँ 

तुम मैं ही तो हो ..

कितने सवाल बन गयी थी मैं
हर कशमकश का आगाज़, मैं
किस बेतरतीबी से फैले थे 
मेरी कहानी के कागज़ कमरे में 

तुम ने यूँ सहेज दिया मुझे 
पास आ कर खुद में समेट लिया मुझे
मैं अपने विस्तार पे इतराने लगी थी 
"बस मेरी हो तुम" ...
कह कर संक्षेप दिया मुझे  

शक्ल से लगते तो नहीं पर थोड़े से पागल तुम भी हो 
मेरे हर दीवानेपन की हद में शामिल तुम भी हो 
मुझ में खो कर दुनिया से घाफ़िल तुम भी हो 
मैं अहमक सही ..
मेरी इस महफ़िल में अब दाखिल तुम भी हो 

अब तो जहाँ निगाह की बस्तियां जमती है तुम आ ठहरते हो 
मेरा श्वेत श्याम घर था, तुम हर रंग में आ संवरते हो 
महकती चांदनी के डेरों पे तुम आसमान सा आ बसरते हो 
घर की इन दर ओ दरवाजों के दरमियाँ बस तुम ही तो हो

अब मैं नहीं .. बस तुम ही तो हो ..

November 17, 2011

ये सड़क कहीं पहुँचती नहीं


ये गहरे काले पेड़ों के साये
अब नहीं डरती मैं इनसे
मेरे अन्दर की परछाई से
कम काले है
ये साये...

ये लम्बी सी सड़क
सड़क के इस तरफ एक भीड़
इस तरफ सैकड़ों तन्हाईयाँ
चलती ही जा रही है
ये सड़क कहीं पहुँचती नहीं

कार के शीशों पे ये
गिरता काला पानी
सामने की गाडी की तेज़ रौशनी
आँखें चौंधियां जाती है
पर मैं टस से मस नहीं होती

अब नहीं लगता हर आहट पे कोई है
एक आवेग लिए बस मैं चलती जा रही हूँ
मैं बस फिसलती ढलती
पानी में गलती जा रही हूँ ..

ये 'काश' नाम का शब्द खुद पर से
कब का मिटा दिया
बहुत रो चुकी
मैं अब हंसती जा रही हूँ
मैं दलदल में धंसती जा रही हूँ ..

हर चौराहे पे सामान दफनाती जा रही हूँ
मैं खुद को तरसता देख मुस्कुराती जा रही हूँ ..

इस अँधेरी गलियों में खुद को गुमाती जा रही हूँ
खुद से ही नाराज़ हूँ खुद को ही मनाती जा रही हूँ ..

हर दर्द को आँखों से बहाती जा रही हूँ
मैं वक़्त के झुनझुने से खुद को बहलाती जा रही हूँ ..

मैं अपनी हर जीत से हारती जा रही हूँ
मैं ये जिंदगी खुद पर से उतारती जा रही हूँ ..

October 29, 2011

बात कुछ भी नहीं पर ...



बात कुछ भी नहीं पर अब बात नहीं होती ... 
रोज़ मिलते है पर मुलाक़ात नहीं होती

इधर उधर के शब्द होते है पर वो बात नहीं होती ...
तारीखें निकलती है पर दिन से रात नहीं होती 

ये बादल जो बिन पानी लिए तैरते है आसमान में ..
हमें तब भी भीगा जाते है जब बरसात नहीं होती

तन्हा रह गया वो समंदर का मोती ...
आस पास पानी है पर अब प्यास नहीं होती

मुझे देख के चाँद तारे भी चुप रहते है ...
इनसे मेरी कोई बात राज़ नहीं होती 

कुछ कहानियाँ जल के ख़तम हो जाती है ...
कुछ कहानियों की शुरुआत नहीं होती 

October 27, 2011

शब्दों की डांट




आज शब्द फिर मुझ पे झल्लाने लगे हैं
क्या फिर से वही लिखने को कहोगी 
वो पुरानी बात जिसके सर न पैर 
कुछ बेकार सा नाम दे कर रहोगी 

सिर्फ एक शाम का बहाना था 
रात तक उसे सिमट जाना था
तुम हर शाम उस शाम को समेटती आ रही हो
उस शाम का ढलना कब तक टालती रहोगी

कुछ भी तो नहीं कहा उसने 
हमने कितना ज़ोर दिया ज़रा पूछो हमसे 
दोनों चुपचाप चलते रहे कितनी देर 
उन क़दमों को कब तक सफ़र में संभालती रहोगी

उफ़, मुस्कुराना तो सब जानते है
लोग तो आजकल बेवजह भी मुस्कुराते है 
उसके खुश इख्लाक को इश्क समझ के
कब तक खवाबों के घोंसले बनाती रहोगी 

हमें माफ़ करो
हमसे ये अनकही बातें नहीं समझी जाती
ये आँखों के इज़हार ये बे जुबां इकरार 
हम नबीना हैं कब तक हम से मदद मांगती रहोगी 

उसका रास्ता यूँ निहारती रहोगी  
उस सांवरे के ख्वाब संवारती रहोगी
हम थक गयीं तुम्हे समझाते समझाते 
तुम कब तक उसे अपना मानती रहोगी

October 19, 2011

एक ठंडी आग


एक ठंडी आग की तरह स्याही बिखेरती थी उसकी कलम 
कागज़ बर्फ सा सिकुड़ जाता पर शब्द देर तक जलते रहे

ये कैसे अफ़साने थे आँखों में मौजूद 
आग के शोले भी पानी की तरह पलते रहे 

वो ठंडा चाँद इस ज़मीन से कोसों दूर  
उम्र भर उसकी चाहत में धीरे धीरे पिघलते रहे

क्या सच में जिस्म से जान जुदा कर देती है आग
एक सर्द सी रात में इस ख्याल से उलझते रहे

आखिरी चिंगारी



ये राख के ढेर पे जो आखिरी चिंगारी बाकी है
मेरी बस इतनी सी ही पहचान बाकी है

लफ्ज़ झुलस गए, धुंए में दिखती नहीं ख्वाइश 

इस राख में अब तलक मेरे आबशार बाकी है

दाग नहीं जलते दाग साथ निभाते है 
दिल दुखाने को यादों के ये जालसाज़ बाकी है

बाज़ नहीं आती अपनी साज़िश से ये रात की महफ़िल 
मेरी खिड़की में जलता हुआ रात का आफ़ताब बाकी है

मेरे बाद भी पहुँच जायेंगी मेरी दुआएं तुम तक 
इस राख में अब भी मेरी मोहब्बत की क़ायनात बाकी है

September 20, 2011

बिटिया आज मायके आई हुई है



बिटिया आज मायके आई हुई है
कितना कुछ बदल गया माँ का घर वही पुराना
पर मेरा अपना ..
या नहीं .. पता नहीं

मेरी सारी किताबें वही अलमारी में सजी है
और धुल भी नहीं जमी
एक खिलौना बिस्तर पे औंधा पड़ा है
चादर पे एक भी सिलवट नहीं

एक फोटो में मेरी दोस्त मुस्कुरा रही है
एक फोटो में बहना गले लगा रही है
वो पल वो शरारतें
मुझे कुछ भी तो भूला नहीं है

ये कम्बल मुझे एक बार पापा ने ओढाया था
उसी रात जब गुस्से में मैंने उनको बहुत सताया था
... और खाना भी नहीं खाया था

इसी तकिये पे मैंने कितने आंसू गिराए थे
देश लौटने के उलटे सीधे
कितने प्लान्स बनाये थे

इस बक्से में चूड़ियाँ सहमी पड़ी मिली
शायद इनको एक बार उतार फेंका था
पर मुझे देख ये भी खिलखिला उठी हैं

ये मेज़ .. यहाँ मैं पढने का नाटक किया करती थी
ये मेज़ .. यहाँ में अपने सपनो से लड़ा करती थी

ये दरवाज़े के पीछे कपडे टांगने की कील
इस पे रोज़ के अपने तज़रबे तांगा करती थी

इस खिड़की पे चाँद आज भी मेरा इंतज़ार कर रहा था

तुम ज़रा रुकना मैं अभी आई
.. शायद इससे भी कहा था

ये बिस्तर इसपे नींद आते आते चली जाती थी
अगले दिन पेपर होता था और मैं तारों से बतियाती थी
... पर पास हो जाती थी

कितनी हिदायतें इस कमरे में आज भी गूंजती हैं
हम याद आयीं कभी ?
... यह भी पूछतीं हैं

बिटिया खुश बहुत है पर फिर भी सोचती है
क्यूँ जाना ज़रूरी था ये खुद से ही पूछती है

एक किताब की तरह में भी अलमारी में छुप जाती
या चूड़ियों के डिब्बे में बिंदिया बन के गुम जाती

कमरे की हर चीज़ मुझे यूँ हैरानी से देखती है
पता नहीं फिर कब आओगी .. ताना फेंकती है

दीवार पे टंगी घडी बेवजह मुस्कुराती है
वक़्त के अलावा सब थम गया है
वक़्त की बराबरी बिटिया कहाँ कर पाती है 

September 14, 2011

हिंदी का महत्व

मैं कैसी कवयित्री हूँ ..
नहीं जानती थी कि आज हिन्दी दिवस है
नहीं जानती थी कि आज हिन्दी हिन्दी खेलना है

क्या हिन्दी को एक दिन में मनाया जा सकेगा

मैं कैसे मनाऊं ये दिवस
आज हिन्दी साहित्य के नाम का केक काट लूं या
हिन्दी कविताओं का गुलदस्ता बना मेज़ पे सजा लूं

और कहाँ मनाऊं ये दिवस
परदेस में कौन सुनेगा मेरा हिन्दी प्रेम
और दिल्ली अभी भी दूर है दोस्तों

पर मैं क्यूँ मनाऊं ये दिवस
क्यूँ दूँ श्रद्धांजलि उस भाषा को
जो अमर है मुझमें
कितने ही अनुभव लिए

अब अपनी मातृभाषा से प्रेम करना कैसे सीखूं

बचपन की हर याद में हिन्दी है
चाचा चौधरी का मज़ा आर्चिज़ कॉमिक्स में कहाँ मिल पाया
हिंदी न हो तो शिवानी जिज्जी को कैसे याद करूँ
कैसे प्रेमचंद की 'निर्मला' को अंग्रेजी में अनुवाद करूँ

पापा की हर डांट हिन्दी में थी
वैसे दादी पंजाबी है पर वो भी गुस्से में हिन्दी ही बोलती थी
लेकिन माँ ने पुचकार लिया ...
"बिटिया" कह के मना लिया

हिंदी के कितने ही निबंध लिखवाए मुझसे मेरी छोटी बहना ने
हिंदी की थी भाई की वो पहली गाली जिसपे उसे मार पड़ी
पापा परदेस जाने लगे तो उनके बैग में छुपाया एक पत्र
गुडिया चाहे न लाना ... पापा जल्दी आ जाना
हाँ .. हिंदी में 

हिंदी प्रेम इसलिए नहीं क्योंकि पढ़नी चाहिए
हिंदी प्रेम इसलिए क्यूँकि .. ये अपनी है

यूँ तो अंग्रेजी में बहुत गिटपिट आती है मुझे
पर अपनी भावनाओं को हिन्दी में ही व्यक्त कर पाती हूँ मैं
क्यूँकि इसी में बह पाती हूँ मैं

और सुन लो सब.. डर नहीं है मुझे
हिन्दी के जैसे ही मुझमें भी मिलावट है
थोड़ी उर्दू, बंगला, पंजाबी भी है
क्यूँ करूँ मैं भाषा का सम्बन्ध विच्छेद

हिन्दी में कितनी भाषाओं का समावेश है
राष्ट्रीय भाषा है .. धर्मंनिरपेक्ष भाषा है
हिन्दी गवर्नमेंट स्कूल की भाषा नहीं
मेरी भाषा है .. हम सबकी भाषा है

माँ कहती है मेरा पहला शब्द हिन्दी में था
माँ ...
मेरा अंतिम शब्द मैं कहती हूँ
... साईं

September 3, 2011

तुझे अलविदा कह आई


तेरी याद वक़्त के पालने में छोड़ आई
मैं कितनी आसानी से तुझे अलविदा कह आई

तुझे अपना घर अपना आशियाना बनाना चाहती थी मगर
ये दीवार ओ दर अपने हाथों से तोड़ आई

एक अदना सी चीज़ तेरी चुरा लायी
तेरे आँखों के नूर अपने माथे पे सजा लायी

किस तरह मिटाया तुझे खुद पर से ये बताऊँ कैसे
छोड़ दिया मिटटी पर से अपना हक .. तेरी रूह मगर लिपट आई

शायद ये झूठ हो की तेरी याद से नाता तोड़ लिया
शायद ये सच हो की तुझे साँसों में समेट लायी

सावन के झूले पे वो बरसात भूल आई
पर हाथों में तेरे लिए लिख के एक दुआ .. मैं कबूल आई

तुझे अलविदा कह आई ...

August 29, 2011

गुरनाम, कितने साल के हो तुम



गुरनाम, 

कितने साल के हो तुम
इतनी उम्र कहाँ पायी तुमने .. अपने छबीस सालों में 

तैरना जानते हो फिर कैसे डूब जाते हो 
एक ही पल में धरती आसमान पाताल कैसे घूम आते हो 
दूसरों के दर्द से अपने दर्द तक का रास्ता .. कुछ टेढ़ा है मगर 
ये सफ़र सीखा तुमने ..
क्योंकि हर मंज़र पे ठहर जाते हो 

हर बार सोचती हूँ बस यही तुम्हारी बेहतरीन कविता है ..
पर हर बार कुछ नया अदभुत लिख जाते हो 
अपनी कलम में शायद तिलिस्म स्याही डालते हो 
अनाम कल्पना में बह कर जीवन सत्य से अवगत कराते हो 

अब कौन हो तुम ... खुद ही परिचय दे दो
तुमको जितना जान पाती हूँ तुम उससे भी गहरा जाते हो 
एक अनजाना रास्ता हो .. 
हर बार नयी मंजिल की और बढ़ जाते हो 

जानती हूँ अच्छी तरह कि तुम्हे नहीं जान पाऊँगी
इतनी उम्र कहाँ पायी तुमने अपने छबीस सालों में ..
सिर्फ अपनी सोच के बलबूते पर
एक पुरानी कोशिश दोहराते हो या एक नयी सदी की नींव रख जाते हो 

August 7, 2011

आज मांगती हूँ ...


मेरे पास खुद की कोई ख्वाइश ही नहीं है ऐ दोस्त /
इसीलिए दूसरों की ख्वाइश अपना के दुआ मांगती हूँ

दुनिया में इतने गरीब देखे तो सोच में पड़ गयी /
किस्मतों को कैसे बांटा है उसने .. जवाब मांगती हूँ

एक एक चम्मच सबको खिलाना है मुझे /
ज़िन्दगी को जीतने का हौसला बेहिसाब मांगती हूँ

मैंने दे सकूँ सबको एक मुट्ठी भर आसमान /
जो पूरे होते हो वो ख्वाब मांगती हूँ

रंग बिरंगी से जी उचट गया हो मानो /
अब बस अमन और आमना का सफ़ेद गुलाब मांगती हूँ

August 6, 2011

एक वसीयत ...



मैंने बादल भेजती हूँ तुम बारिश में भीग लेना /
मैं काजल भेजती हूँ तुम आँखों में खींच लेना

मेरा दर्द बेपर्दा नज़र आये तो आँखें मीच लेना /
एक एहसास के समंदर को आसुओं से सींच लेना

कुछ सपनो की सौगातें है, मुठी में भींच लेना /
मैं मरना भेजती हूँ तुम जीना सीख लेना

मेरे हिस्से का कभी सवाल आये तो झूठी सी तकदीर कहना /
भूल जाना मेरा नाम बस 'ख़्वाबों की हीर' कहना

August 1, 2011

एक और ख़त जो भेजा नहीं ...

कुछ रोज़ पहले एक ख़त लिखा था पर छुपा लिया था आँखों में /
आज उसे पढ़ के एक फीकी सी मुस्कराहट आई है

उस ख़त में चाँद से शिकायत की तुम को भी ले आया करें /
मेरी शिकायत चाँद तक शायद नहीं पहुँच पायी है

एक बादल की बारिश तब लिखी थी तुमको /
एक बारिश आज फिर आँखों में भर आई है

आईने का एक मुस्कुराता चेहरा शायद तुम्हे बुला भी लाता /
क्या भेजती की आईने ने उदास सी शकल बनायीं है

कितनी बार नाराज़ हुई तुमसे, कितनी बार दिल को समझाया है /
इस बार तुम समझा दो इसे, मेरा तो ये बन बैठा सौदाई है

हर बार सोचती हूँ तुम आओगे तो अब तुमसे नहीं बोलूंगी /
मासूमियत देखो, तुम नहीं हो फिर भी दिल की बात तुमहे ही बताई है

हीर

ख़्वाबों की मैं हीर ~

सोने लगी तो रानी थी ~

जागी तो फकीर

July 24, 2011

बस इस पल में

काजल से लिखे है मेरे ख़्वाबों ने कुछ ख़त उनके नाम ...
इन्हें डाकिये के हाथ भेजा तो खवाब रूठ जायेंगे

दुपट्टे में बाँध लिए है वक़्त के कुछ भीगे पल ...
इन्हें हाथों से छुआ तो ये सूख जायेंगे

चाँद को माथे से हटा के ज़रा आँखों में छुपा लूँ ...
रात के चोरों ने देखा तो चांदनी इसकी लूट जायेंगे

एक बारिश छुपा के तकिये में रख ली है ...
तेरे आने से पहले तेरे इंतज़ार में भीग जायेंगे

इस पल में मुस्कुरा के मरना ही मेरी ख्वाइश है शायद ...
इस मरने में ही कुछ पल जीना सीख जायेंगे

July 19, 2011

अदला बदली, कुछ यूँ भी

मौसम ए श्रृंगार की अदला बदली हो जाये कुछ यूँ करो सखी..

मैं तुम्हे रात का काला टीका लगा दूँ, तूम मुझे सूरज सी बिंदिया दे दो


महक उठे वक़्त के हर लम्हों में हम दोनो..

मैं तुम्हे खिलखिलाते फूलों का गजरा लगा दूँ, तुम मुझे चांदनी का इत्र दे दो


खनक उठे खुशियाँ हम दोनों की आवाज़ में..

मैं तुम्हे चूड़ियों सी हसीं दे दूँ, तुम मुझे पायल की झंकार दे दो

चलो यूँ हम रात दिन का याराना रख लें ऐ सखी..
मैं तुम्हे अपना सितारों वाला ख्वाब देती हूँ तुम बस मुझे वो अधुरा सपना दे दो 

July 14, 2011

ओ आँतकवादी

सोचती हूँ जिस दिलेरी से तुमने वो बम्ब छुपाया होगा,
घर जाके वैसे ही बिटिया को निवाला खिलाया होगा,

कौनसा बाकी रह गया काम अधूरा,
घर से निकलने का बहाना माँ को क्या बताया होगा,

घर से निकलते हुए बच्चे ने पकड़ ली होंगी तेरी टाँगे,
उसे कौन सा खिलौना देकर पीछा छुड़वाया होगा,

गली से गुज़रते हुए कैसे दोस्त की आँख में झाँका होगा,
दोस्तों ने तो आज किसी फिल्म और रात को खाने पे बुलाया होगा,

मिठाई की दुकान के सामने उस भोली सी नाज़नीन से मिली थी आँखे,
उस नज़र का खुमार कैसे खुद पर से मिटाया होगा,

अब्बा ने बोला होगा आते हुए दादी की दवाई लेते आना,
आते वक्त क्या तुमने वो वादा निभाया होगा?

आसान नहीं था आज का काम मेरे भाई,
काम पूरा होते ही काँधा खुद का थपथपाया होगा,

अपने मालिक को खुशखबरी दी होगी वापिस आते हुए,
और रास्ते के शायद किसी मन्दिर, मस्जिद या गुरुदुआरे पे शीश निवाँया होगा,

घर पहुँचते नतीजा देखा होगा टीवी पे,
उस बच्चे की चीखें सुन थोड़ा तुझे भी तो रोना आया होगा

चलो खैर छोड़ो....... जाने दो

March 6, 2011

boond

baarish ki wo boond hun mein,
jo kabhi akeli jagmagaye,
kabhi paani mein mil jaye

February 5, 2011

ek aur khatam

Ehsaas, mulakat,
kasme waade, silsila

Taqraar, koshishen
Zamana, shikwa-gila

kahani bas ek aur khatam hui doston

Insaaf

Jab se dil toota hai us dilon se khelne waale ka /
Suna hai kaafir masjid jaane laga hai /

Jis haath se kai baar dilon ki saudebaazi ki /
wo haath ab sirf ibaadat mein uthne laga hai /

Kai bezubaan maare jis qatil ne /
wo khuda ke insaaf se darne laga hai /

jis beraham ne meri duaon ka deep bujhaya
wo mere hi sai se raham ki dua karne laga hai

Republic Day

chowk mein chhodo, bas yahi karke dikhlado /

ek tiranga dilon mein lehra do

Raj chhodo, bas kuch aisi niti apnao /

Mera Desh prem aur gehra do

jhoote vaade nahi, kuch aisa malham lagao ki /

deshvaasiyon ke jakhm sehla do

kab se bhooki hai is desh ki mitti /

karm satya ahinsa se nehla do

meri kahani



koi kehta hai kismat ka khel hai
koi kehta hai yeh thi meri nadaani
koi taras ke do bol bhi bol gaya
koi hans diya sunke meri kahani
koi hairaan sa reh gaya
koi bola bhool ja baat hui purani
par kisi se ab kya kehna






..jab meri sachai bhi hui mujhse begaani

Manzil



dhoondte rahe manzil kai khawaishen liye
mil na saka kinara bhi ek pal ke liye
Kehkashan se door chalte rahe ek sadak pe
manzil se hote hue..magar nikal pade phir aage
is baar na manzil ki talab hai na kinaare ki






..bas yun hi chal diye

Filhaal ..

Kitni karwatein badli humne
subah ke intezaar mein
kitne chain kho diye
ek afsaane ki yaad mein
kai pal gawa diye
bas yunhi bekaar mein
ab sochti hun ..
jee lun yeh pal filhaal main

Radiant Raindrops

Kuch nanhi … kuch naadaan si
Kuch alhad … kuch shaitan si
Kabhi narm si, chehre ko bhigati rahi
Kabhi thandi thandi, aansoo chhupati rahi

Swarnim aabha liye yeh baarish ki boondein
Mann mein ujjwalit ehsaas jagati rahi