October 17, 2016

मादनो..






जिस्म से तू और मैं जब फ़ना होंगे
रूह के काफिलों में हम रवां होंगे 
भर कर क़दमों में आब ए चश्म 
हम मोहब्बत का दरिया होंगे

झील पर ठहरे हुए पतझड़ की तरह  
मेरे होठों पर तेरे निशाँ होंगे
रक्स होगा, रक्स से पहले लेकिन
पिघल कर हम तुम धुंआ होंगे  

ज़मीन से आती हुई सदाओं से
न वाबस्ता हम वहां होंगे
हम भी वहाँ हम नहीं होंगे
बस इश्क के आसमां होंगे 

तुम चाँद का बोसा अलसाया सा
मेरे घूंगरूओं पर आफ़ताब मेहरबान होंगे
साथ चलेंगे दोज़ख तक मादनो
जन्नत में कहाँ हमारे मकां होंगे 

© अनुराधा शर्मा

October 12, 2016

अच्छा है हम और तुम



अच्छा है हम और तुम बात नहीं करते..
एक दूसरे पर ख़ाली जज़्बात नहीं करते ..

दिन भर करते हैं चाँद का इंतज़ार ..
ताकते हैं आसमान मगर रात नहीं करते..

शहर के शहर बिछाते हैं बातों से अपनी..
क्या सोचकर तुम से मुलाक़ात नहीं करते..

सुलगते रहते है नमकीन बादल आँखों में..
हम आँखों से फिर भी बरसात नहीं करते..

कई क़िस्सों में बँटी है कहानी मगर..
ये क़िस्से ख़ुद से शुरुआत नहीं करते ..

दोस्त आएँ हैं आज बज़्म में हमारी..
हम ग़ज़लों को यूँही आज़ाद नहीं करते ..

© अनुराधा शर्मा