March 28, 2012

धीमे धीमे





धीमे धीमे रात सरकती जाती है पैरों तले ..
हाथों में चाँद दबोच के बैठे हैं

धीरे धीरे कागज़ पर पिघलता है काजल ..
उँगलियों में ख्वाब निचोड़ के बैठे हैं ..

दिल ही दिल में पुराने किस्सों से बातें की हैं ..
फिर तेरी यादों के आगोश में बैठे हैं

दूं क्या जवाब तुझे तेरे सवालों का ..
आज अपना ही दिल तोड़ के बैठे हैं

दोस्तों की भीड़ में तन्हाई के सैकड़ों काफिले देखे ..
ये हम किन बेतरतीब दौर में बैठे हैं ..

गुज़रा हुआ वक़्त





दिन महीने साल गुज़रते जाते हैं ..
एक गुज़रा हुआ वक़्त है जो गुज़रता नहीं

दूर जा कर भी मुझसे तू दूर नहीं जाता ..
तेरी यादों का काफिला चलता तो है पर आगे बढ़ता नहीं ..

दामन में छुपाया हमने एक रेत का महल ..
समंदर के कुनकुने पानी से भी ये ढलता नहीं

दिल में हमने अपने ग़म के पहरेदार बिठाए है..
तेरी मोहब्बत का कोहिनूर अब हमसे संभालता नहीं

कल पुरानी डायरी के पिछले पन्ने पर
कुछ लफ्ज़ मिले ..
तुमसे मिलते जुलते ..

जाने कब बिखरी थी यहाँ तेरी यादों की स्याही
अब दिल तेरा नाम लेता भी है तो बेवजह कहीं लिखता नहीं





March 25, 2012

सफ़ेद बादल ओढ़ दो ..


कोई अक्स नहीं दिखता मुझे मेरे आईने में .. 
ढूँढ दो मुझे, या फिर ये आइना भी तोड़ दो

वो कहते थे मेरे हाथ खाली अच्छे नहीं लगते ..
कांच के आंसुओं की एक लड़ी मेरी कलाई में जोड़ दो

मैं नबीना, मुझे रास्तों पे भटकने की आदत है ..
जहाँ मेरी मंजिल हो, मेरे पाँव वहीं मोड़ दो

नहीं बाकी मुझ में अब जवाब कोई ..
ऐ सवालों के दरिन्दे, मेरा मकान छोड़ दो

एक शबनम का कतरा था लबों पर, लो सूख गया ..
ऐ ज़िन्दगी, अब मुझे मेरी प्यास से सराबोर दो

मैंने नहीं सुनना चाहती ये बे इन्तहा खामोशी ..
मेरे कानों में शहर के चौराहों का शोर दो

इन फूलों को शायद मुझसे नाराज़गी है ..
वो नहीं आयें तो ना सही .. तुम मुझ पर सफ़ेद बादल ही ओढ़ दो

March 15, 2012

कब रिश्ते निभाये मैंने ..


कब रिश्ते निभाये मैंने
बस हिसाब चुकाए मैंने
एक उधार की मुस्कान
नकद के आंसू मेहमान
सिर्फ कारोबार बनाए मैंने

एक फरेब को तोला मैंने
झूठ को बहुत दिन टटोला मैंने
दिन रहते डरे सहमे परेशान
रात होती तो जलता आसमान
यूँ कई चाँद बुझाए मैंने

एक जिद्द संभाली मैंने
बेवजह वजह बना ली मैंने
मेरी मैं से भारी था दर्द का सामान
कहने को मेरा, पर खाली था मकान
यूँ कितनी बार भरे थे किराए मैंने

एक मजबूरी भी टाँगी थी मैंने
ये सजा खुद ही मांगी थी मैंने
मेरी चुप पर पड़ते मेरे गुस्से के निशान
रहती तंगदिल, चेहरे से पाषाण
कितनी बारिशों के मौसम सुखाये मैंने

एक आध बार ग़म भी आया था दोस्ती करने
मैं हंस दी थी उसपर
पीछे मुड़ कर मैंने देखा ही नहीं
वो भी हंस रहा था मुझपर

ये जाना ही नहीं मैंने
ग़म कब मेरे साथ चल पड़ा था
अनदेखे ही सही
अनजाने ही सही
खुद उसको रस्ते दिखाए मैंने

March 5, 2012

बस जिद्द में चलते जा रहे हैं ..



किसको मालूम है ग़म के कितने और बादल बाकी है ..
हम बरसे तो बस बरसते जा रहे हैं

कौन जानता है जन्नत के निशाँ कहाँ मिलते हैं ..
हम तरसे यूँ की बस तरसते जा रहे हैं

ज़िन्दगी के सूखे सफ़ेद पत्तों पर ..
हम रिश्तों के लहू से लिखते जा रहे हैं

मकान अपना कहते थे जिस दिल को कभी ..
उन दीवारों की हद्द से बाहर निकलते जा रहे हैं

एक बे-लौस सी नज़र हमको कुबूल हुई थी कभी ..
हम उन नज़रों से बच कर छुपते जा रहे हैं

वो जो महसूस होता था तो महसूस ही नहीं होता था ..
अब उसके एहसासों के क़र्ज़ से बिदकते जा रहे हैं

कहानियों के लालच दे कर रोक लिया करता था बरगद का पेड़ ..
पर हम मुसाफिर हैं तो बस एक जिद्द में चलते जा रहे हैं

मोम की गुडिया बन के सदियों तक उम्र गुजारी है ..
अपनी ही आह में अब पिघलते जा रहे हैं

यूँ मेहरबान थी, पर काम न आई मसीही मेरी ..
फिरदौस की गलियों में भी भटकते जा रहे हैं

March 3, 2012

आखों से अब बरसात नहीं होती ..



आज आईने में सामने बिठा के बोल दिया ज़िन्दगी से ..
कद्र कर मेरी! ना मैं होती तो तू भी नहीं होती


दिन बा दिन, दिनों की आवारगी बढ़ती जाती है ..
हम बिखर जाते जो रातों को रात नहीं होती

सस्ते दामों पर मैंने खरीद लिए कुछ कदमो के निशाँ ..
सफ़र में बिछा लूं इन्हें ज़रा, आज तन्हा तन्हा बात नहीं होती

मंजिलों की भी उड़ान है, अभी और ख्वैशें हैं ..
यहाँ पहुँचने पर भी मंजिल मेरे साथ नहीं होती

हम भी जुट जाते हर जीत हासिल करने यारों ..
काश सामने हमारे ना-कामियों की कायनात नहीं होती 

शायद मेरे दुश्मनों से जा के मिल आई है ये ..
मेरी हो के रहती तो ज़िन्दगी बर्बाद नहीं होती  

कुछ सवालों का धुंआ आँखों में बस चला है ..
जवाब होते हैं, पर आखों से अब बरसात नहीं होती 

लम्हे सिकुड़ के मर जातें है मेरे ठन्डे एहसासों पे ..
मेरी कलम में यूँ ही शब्दों की खैरात नहीं होती