मौसम ए श्रृंगार की अदला बदली हो जाये कुछ यूँ करो सखी..
मैं तुम्हे रात का काला टीका लगा दूँ, तूम मुझे सूरज सी बिंदिया दे दो
महक उठे वक़्त के हर लम्हों में हम दोनो..
मैं तुम्हे खिलखिलाते फूलों का गजरा लगा दूँ, तुम मुझे चांदनी का इत्र दे दो
खनक उठे खुशियाँ हम दोनों की आवाज़ में..
मैं तुम्हे चूड़ियों सी हसीं दे दूँ, तुम मुझे पायल की झंकार दे दो
मैं तुम्हे रात का काला टीका लगा दूँ, तूम मुझे सूरज सी बिंदिया दे दो
महक उठे वक़्त के हर लम्हों में हम दोनो..
मैं तुम्हे खिलखिलाते फूलों का गजरा लगा दूँ, तुम मुझे चांदनी का इत्र दे दो
खनक उठे खुशियाँ हम दोनों की आवाज़ में..
मैं तुम्हे चूड़ियों सी हसीं दे दूँ, तुम मुझे पायल की झंकार दे दो
चलो यूँ हम रात दिन का याराना रख लें ऐ सखी..
मैं तुम्हे अपना सितारों वाला ख्वाब देती हूँ तुम बस मुझे वो अधुरा सपना दे दो
4 comments:
badhiyaa
अनूठे उपमान - बहुत सुंदर
बहुत सुन्दर तरीके से भावनाओ को शब्दों में उतारा है आपने !
खनक उठे खुशियाँ हम दोनों की आवाज़ में /
मैं तुम्हे चूड़ियों सी हसीं दे दूँ, तुम मुझे पायल की झंकार दे दो
दिल से लिखी कविता दिल को छू जाती है .
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