April 21, 2016

कभी मुझसे भी ..




कभी मुझसे भी हिसाब माँगा करो.. 
वक़्त की टोकरी से दो लम्हे मैंने भी चुराए थे..
 

यूँ ही कभी सवालों के जवाब माँगा करो..
तेरे लिए ही इन आँखों के नक़ाब गिराए थे..

जो नींद ना आए तो मुझसे मेरे ख्वाब माँगा करो..
तेरे लिए ही मैने चाँदनी के झूले डलवाए थे..

इश्क़ में फनाह होने का हुनर बेहिसाब माँगा करो..
तेरे लिए मोहब्बत के फरिश्ते ज़मीन पे उतार आए थे..

पी जाओ 'मैं' को, सजदों में फिर शराब माँगा करो..
तेरे नाम से मेरी रूह के खाली जाम भर आए थे.. 



Kabhi mujhse bhi hisaab maanga karo.. 
Waqt ki tokri se do lamhe maine bhi churaaye they..
Yunhi kabhi  sawaalon ke jawaab maanga karo.. 
Tere liye hi in aankhon ne naqaab giraaye they..

Jo neend na aaye to mujhse mere khwaab maanga karo.. 
Tere liye hi maine chaandni ke jhoole dalwaaye they..

Ishq mein fanaah hone ka hunar behisaab maanga karo.. 
Tere liye mohabbat ke farishte zameen pe utar aaye they..

Pee jaao 'main' ko, sajdon mein phir sharaab maanga karo.. 
Tere naam se meri rooh ke khaali jaam  bhar aaye they..

याद रखना था..



अक्सर भूल जाती हैं मुझे वही बातें..
ज़िंदगी जीने के लिए जिन्हे याद रखना था..
 

पिंजरे में वक़्त की चिड़िया देख के हंसती है..  
क़ैद किए  वही पल जिन्हे आज़ाद रखना था..

कंक्रीट जंगलों ने कभी सोचा ही नही ..
गाँव के बरगद को भी आबाद रखना था..


पढ़ा लिखा कर अफ़सर बनाया बेटे को..
बेटियों के सर पर भी तो हाथ रखना था..

दोस्त बने, दोस्ती यारी में जान भी लुटाई..
अपनी परछाई को मगर साथ रखना था.. 



Aksar bhuul jaati hain mujhe wahi baatein..
Zindagi jeene ke liye jinhe yaad rakhna tha..

Pinjre mein waqt ki chidiya dekh ke hansti hai.. 
Qaid kiye wahi pal jinhe aazaad rakhna tha..

Concrete junglon ne kabhi socha hi nahi .. 
gaon ke bargad ko bhi aabaad rakhna tha..

Padha likha kar afsar banaya bete ko.. 
Betiyon ke sar par bhi to haath rakhna tha..

Dost bane, dosti yaari mein jaan bhi lutaayi.. 
Apni parchaai ko magar saath rakhna tha..

April 20, 2016

बारिश भी कभी ..




बारिश भी कभी तूफ़ान थी..
बादलों ने रखी थाम थी..

ये सोच कर ख़ुश हो जाती हूँ..
 मैं भी कभी इंसान थी ..

मौक़ापरस्ती बेतहाशा हँसती रही ..
ये देख कर उम्र बहुत परेशान थी..

घोंसले का सिकंदर क्यूँ सोचता है ..
ज़िंदगी से ज़्यादा जी लेने की उड़ान थी..

जिसने फेंके दूसरों के घर में पत्थर..
उसकी ख़ुद की बेटी जवान थी..

दर बदर दाना ढूँढती है जो चिड़िया ..
कभी मेरी खिड़की की ख़ास मेहमान थी.. 


आधे यहाँ रखे हैं..


आधे यहाँ रखे हैं, आधे वहाँ रखे हैं..
ये ख़याल तुम्हारे जाने कहाँ कहाँ रखे हैं ..

कुछ ख़र्च हो गए कुछ ख़त्म होते रहे ..
बाक़ी के सब क़िस्से हमने बेजुबाँ रखे हैं ..

महफ़िलें सजी है जिन घुँघरुओं के लिए..
हमने कब के वो दीवारों में चुनवा रखे हैं..

आते हैं, बैठे बिना मगर चले जाते हैं..
फ़िज़ूल ही दिल ने मकान बनवा रखे हैं..

यूँ करें कि नदियाँ मोड़ लाएँ अपनी ..
कि समंदरों ने दाम बढ़ा रखे हैं ..


वो वादा करने से पहले तोल-भाव करते हैं..
हम ने बेवजह ही सैंकड़ों गुमान रखे हैं..

इन हर्फों में उनकी महक नहीं है कहीं ..
किताबों में फूल किसी ने खामखां रखे हैं..

सालों से चाँद ने रुलाया है मगर ..
वक़्त की धूप ने आँसू सुखा रखे हैं..


(Photo Credit: Unfortunately I do not know the source of this beautiful picture. I found it on net as it was closest to emotion in my poem.)

April 3, 2016

#Shair के बारे में क्या कहूँ



कहानी लिखने बैठूंगी तो सुबह से शाम हो जायेगी.. आपके पास भी कहाँ वक़्त होगा ..

जब तक भारत में थी .. हिंदी उर्दू से कुछ खासा लगाव न था .. स्कूल और घर पर भी ज्यादा जोर अंग्रेजी बोलने पे दिया था .. मगर विदेश में आ कर लगा जैसे अन्दर से कस्तूरी सूख गयी हो .. ऐसी जुबां का भी क्या करना जिस पे  मात्रभाषा का एक भी बोल न हो .. सारा दिन अंग्रेजी में गितपिटाने के बाद लगता कोई तो हिंदी की शिकंजवी , पंजाबी की लस्सी या फिर उर्दू का शरबत पिला दे .

ये २०११ की बात है .. Twitter पर आ कर पहली बार शायरी / कविताई की .. चाँद बारिश और गरीब का बच्चा पर लगे चिपकाने .. जो पसंद की जाने लगी .. फोलोवेर्स बढ़ गए .. हम तो रातोरात फेमअसइया गए  .. खुद पर डुल गए .. और इन्ही में से  किसी फलां फलां  शायरी ने पहुंचा दिया मुझे #shair के पास.. या यूँ कह लीजिये राणा आपा के पास..

हाँ ये #shair और राणा आपा पर्यायवाची शब्द हैं ..



#shair ग्रुप से खूब मिली .. ग्रुप का फॉर्मेट था की भारत और पाकिस्तान के प्रसिद्ध लेखक कवि शायर के काम को लिखना, पढना, शेयर करना .. अब तो आये दिन ग़ालिब गुलज़ार से मुलाकात होने लगी .. और फिर ये हुआ की हम लाइन पे आ गए .. सबसे पहले तो ये पता लगा की .. भैया जो हम लिख रहे हैं.. उ कौनो काम का नहीं है .. अपनी तथाकथित कविताई पे शर्म आई और हमने उसे पैर से यूँ अलमारी के पीछे खिसका दिया ..

और चार पांच महीने हमने सिर्फ #shair को पढ़ा .. और सीखने के कोशिश की उन महान आत्माओं से जो कितने तिलस्मी और खूबसूरत तरीके से सच का व्याखान करते थे, करते आ रहे हैं .. आदम गोंडवी को पढ़ के मुंह खुला रह जाता, मुन्नवर राणा को पढ़ के अक्ल और आंसू दोनों आ जाते .. और परवीन शाकिर को पढ़ कर रुदाली वाला रोना .. निदा फाजली से सीखा जीना का जज्बा .. अहमद फ़राज़ और फैज़ से मोहब्बत को अलग अलग तरह महसूस करना और बयान करना ..

गुलज़ार मेरे सबसे पसंदीदा शायर थे लेकिन #shair के ज़रिये मैंने उनकी वो कविताएं पढ़ी जो एक NRI को आसानी के उपलब्ध नहीं है .. गुलज़ार मेरे और भी पसंदीदा हो गए .. गुरु हो गए.. कभी सोचती हूँ उनको चिट्ठी लिखूं .. फिर सोचती हूँ .. वो जो खुद ही अलौकिक खतों का पुलिंदा है .. उसे मेरा आधा अधुरा ख़त पता नहीं मिले भी या नहीं .. खैर ..

और फिर यूँही ... ऐसे ही मैंने दोबारा लिखना शुरू किया .. कुछ रूहानी कहानियाँ निकल के आने लगी .. खुद को पढना आया .. एक ठहराव आया खुद में .. सदियों से बंद चिरागों में से निकले जादुई चाँद, बूंद बूंद समंदर .. और रोशनाई बारिश के सूफियाना रक्स .. और देखो न .. मैं अब तक नाचती आ रही हूँ ..


#shair से पहचान मिली .. हौसला अफजाई मिली .. आपा मिली जो की खुद में एक institution हैं .. ये शख्सियत करोड़ों में एक है .. और दोस्त मिले (कुहू, राणा आपा, मिथिलेश, जुनैद जुनी, नदीम naddy, गायत्री जिज्जी, अरुणा जी, आबिद सर, रूबी, शेज़ी भाई, गौरव वड्डे वीर जी, उस्मान वीरा, ताहिर अम्मू और बेस्ट फ्रेंड इन्दर ) ..

और मिला रूहानी बूता .. कि चाँद के नूर और बारिश के लम्स को लफ़्ज़ों में समेट सकने की असाध्य कोशिश कर सकती हूँ .. और उस गरीब के बच्चे के गाल पर चिकोटी काट के अपने लिए दो पल की हंसी खरीद सकती हूँ ..

#shair को 6th सालगिरह मुबारक और  हमको #shair मुबारक ..


-
अनुराधा शर्मा