December 7, 2011

ये जो है ज़िन्दगी ..



रात को इसे उतार के तकिये पे सुला देती हूँ प्यार से ..
रोज़ सुबह मुझसे पहले उठ जाती है ज़िन्दगी 

बस खिड़की से बाहर की दुनिया देखती है शहज़ादी ..
घर से  बाहर ले जाऊं तो डर जाती है ज़िन्दगी 

बहुत नाटक करती है ये ड्रामेबाज़ ..
कहना ज़रा भी तो नहीं मानती है ज़िन्दगी 

बहुत नादान है, किसी छोटी बच्ची की तरह ..
मेले की भीड़ में हाथ छोड़ जाती है जिंदगी 

बहुत ढूँढती हूँ इसे कह्कशों में ..
अकेले में रोती हुई गले लिपटने आती है ज़िन्दगी 

वो जो एक अपना हो उससे ही नाराज़ फिरती है जाने कहाँ ..
बेकार मेहमानों को घर बुला लाती है ज़िन्दगी 

मैं भी किसी उड़ान में रहती हूँ शायद ..
बारहां मेरी सोच से पीछे रह जाती है जिंदगी 

5 comments:

Aparna Gautam said...

Baap re baap...aapne to ek tasveer bana di aankhon ke ssamne...behad pyaari tasveer :) mubaarak ho!!!

Unknown said...

अनुराधा , जैसा पहले ही बोला तुम्हारे ख़याल और चीज़ों को बाँध के पिरोने की नैसर्गिक प्रतिभा है . अब जब उन्हें लिखो तब उसे उतनी ही सुंदरता से गढो. इसलिए विचार आयें तो तुरंत लिखो और फिर तराश कर लिखो . मोतियों की माला बन जायेगी .

संजय भास्‍कर said...

very beautifully written .. and very very sweet post....Anuradha ji

Ankur Srivastava said...

Very beautiful. Very ... :)

Shabana said...

Bahut khubsurat