बात कुछ भी नहीं पर अब बात नहीं होती ...
रोज़ मिलते है पर मुलाक़ात नहीं होती
इधर उधर के शब्द होते है पर वो बात नहीं होती ...
तारीखें निकलती है पर दिन से रात नहीं होती
तारीखें निकलती है पर दिन से रात नहीं होती
ये बादल जो बिन पानी लिए तैरते है आसमान में ..
हमें तब भी भीगा जाते है जब बरसात नहीं होती
तन्हा रह गया वो समंदर का मोती ...
आस पास पानी है पर अब प्यास नहीं होती
मुझे देख के चाँद तारे भी चुप रहते है ...
इनसे मेरी कोई बात राज़ नहीं होती
कुछ कहानियाँ जल के ख़तम हो जाती है ...
कुछ कहानियों की शुरुआत नहीं होती
11 comments:
बहुत ही कशिश है आपकी कविताओ में ! एक अजीब से खलिश ....पता नहीं क्या !
~आप का प्रिय पाठक~
OMG..
Such complicated emotions.. yet so simple words...
Straight from heart!
Beautiful. :)
Awesome!!
तन्हा रह गया वो समंदर का मोती ...
आस पास पानी है पर अब प्यास नहीं होती
कुछ कहानियाँ जल के ख़तम हो जाती है ...
कुछ कहानियों की शुरुआत नहीं होती
Loved it.
कुछ कहानियाँ जल के ख़तम हो जाती है ...
कुछ कहानियों की शुरुआत नहीं होती
वही कहानियां कहलाती हैं जो हमेशा अमर रहती हैं
आजकल के संकीर्ण रिश्तों को बखूबी जताती आपकी पंक्तियाँ..
खूबसूरत..
beautiful :)
Atti Khubsurat. Maza Aagaya.
बात कुछ भी नहीं पर अब बात नहीं होती ...
रोज़ मिलते है पर मुलाक़ात नहीं होती
rocking
बात कुछ भी नहीं पर अब बात नहीं होती ...
रोज़ मिलते है पर मुलाक़ात नहीं होती
rocking
bahut khoob..:)
तन्हा रह गया वो समंदर का मोती ...
आस पास पानी है पर अब प्यास नहीं होती
........बहुत सही बात कही
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