August 29, 2011

गुरनाम, कितने साल के हो तुम



गुरनाम, 

कितने साल के हो तुम
इतनी उम्र कहाँ पायी तुमने .. अपने छबीस सालों में 

तैरना जानते हो फिर कैसे डूब जाते हो 
एक ही पल में धरती आसमान पाताल कैसे घूम आते हो 
दूसरों के दर्द से अपने दर्द तक का रास्ता .. कुछ टेढ़ा है मगर 
ये सफ़र सीखा तुमने ..
क्योंकि हर मंज़र पे ठहर जाते हो 

हर बार सोचती हूँ बस यही तुम्हारी बेहतरीन कविता है ..
पर हर बार कुछ नया अदभुत लिख जाते हो 
अपनी कलम में शायद तिलिस्म स्याही डालते हो 
अनाम कल्पना में बह कर जीवन सत्य से अवगत कराते हो 

अब कौन हो तुम ... खुद ही परिचय दे दो
तुमको जितना जान पाती हूँ तुम उससे भी गहरा जाते हो 
एक अनजाना रास्ता हो .. 
हर बार नयी मंजिल की और बढ़ जाते हो 

जानती हूँ अच्छी तरह कि तुम्हे नहीं जान पाऊँगी
इतनी उम्र कहाँ पायी तुमने अपने छबीस सालों में ..
सिर्फ अपनी सोच के बलबूते पर
एक पुरानी कोशिश दोहराते हो या एक नयी सदी की नींव रख जाते हो 

August 7, 2011

आज मांगती हूँ ...


मेरे पास खुद की कोई ख्वाइश ही नहीं है ऐ दोस्त /
इसीलिए दूसरों की ख्वाइश अपना के दुआ मांगती हूँ

दुनिया में इतने गरीब देखे तो सोच में पड़ गयी /
किस्मतों को कैसे बांटा है उसने .. जवाब मांगती हूँ

एक एक चम्मच सबको खिलाना है मुझे /
ज़िन्दगी को जीतने का हौसला बेहिसाब मांगती हूँ

मैंने दे सकूँ सबको एक मुट्ठी भर आसमान /
जो पूरे होते हो वो ख्वाब मांगती हूँ

रंग बिरंगी से जी उचट गया हो मानो /
अब बस अमन और आमना का सफ़ेद गुलाब मांगती हूँ

August 6, 2011

एक वसीयत ...



मैंने बादल भेजती हूँ तुम बारिश में भीग लेना /
मैं काजल भेजती हूँ तुम आँखों में खींच लेना

मेरा दर्द बेपर्दा नज़र आये तो आँखें मीच लेना /
एक एहसास के समंदर को आसुओं से सींच लेना

कुछ सपनो की सौगातें है, मुठी में भींच लेना /
मैं मरना भेजती हूँ तुम जीना सीख लेना

मेरे हिस्से का कभी सवाल आये तो झूठी सी तकदीर कहना /
भूल जाना मेरा नाम बस 'ख़्वाबों की हीर' कहना

August 1, 2011

एक और ख़त जो भेजा नहीं ...

कुछ रोज़ पहले एक ख़त लिखा था पर छुपा लिया था आँखों में /
आज उसे पढ़ के एक फीकी सी मुस्कराहट आई है

उस ख़त में चाँद से शिकायत की तुम को भी ले आया करें /
मेरी शिकायत चाँद तक शायद नहीं पहुँच पायी है

एक बादल की बारिश तब लिखी थी तुमको /
एक बारिश आज फिर आँखों में भर आई है

आईने का एक मुस्कुराता चेहरा शायद तुम्हे बुला भी लाता /
क्या भेजती की आईने ने उदास सी शकल बनायीं है

कितनी बार नाराज़ हुई तुमसे, कितनी बार दिल को समझाया है /
इस बार तुम समझा दो इसे, मेरा तो ये बन बैठा सौदाई है

हर बार सोचती हूँ तुम आओगे तो अब तुमसे नहीं बोलूंगी /
मासूमियत देखो, तुम नहीं हो फिर भी दिल की बात तुमहे ही बताई है

हीर

ख़्वाबों की मैं हीर ~

सोने लगी तो रानी थी ~

जागी तो फकीर